मंगलवार, 20 सितंबर 2016

काली स्याही ,सफ़ेद चेहरा ..(स्याही प्रकरण )



स्याही  प्रकरण से  उठते सवाल

आपको रोटी सिनेमा का यह गाना याद है , इसमें  सिनेमा में मक्कार साहूकार का किरदार निभाने वाली जीवंत कलाकार जीवन  की बेटी को सब चरित्रहीन  कहकर उस पर पत्थर बरसाने लगते हैं उसी समय उस सिनेमा के नायक राजेश खन्ना आकर सबको यह कहकर रोक देते हैं की आज हम इस पापिन  को सब मिलकर सजा देंगे लेकिन पहला पत्थर मारने का हक सिर्फ उसको है जो खुद पापी नहीं है || ज्योति किसी पर जूता फेंकने स्याही फेंकने अभी जैसे प्रकरणों को देखता हूं तो सबसे पहला ख्याल यही मन में आता है।। .......देखिये ये  गाना .....





हाल ही में इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति का शिकार हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ||इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्तमान सरकार में और खुद आम आदमी पार्टी में यदि अब भी कोई सो प्रतिशत सोने का खरा व्यक्ति है तो वह सिर्फ खुद मनीष सिसोदिया हैं || इसका प्रमाण आज स्वयं उन्होंने एक बार फिर दिया और स्याही मुंह पर गिरने के बावजूद वह शांत और स्थिर बने रहे। सबसे दुखद स्थिति यह है कि यह प्रवृत्ति अब दिनों दिन बढ़ती जा रही है और इस प्रवृत्ति का शिकार देर सवेर हर बड़े दल का नेता हो रहा है कभी किसी प्रेस वार्ता में तो कभी किसी जनसभा में कभी किसी चुनाव प्रचार रैली में इस प्रकार का व्यवहार किया जाना निश्चित रूप से बहुत ही ज्यादा निंदनीय हो खतरनाक है।


यह किसी एक दल किसी एक सरकार या किसी एक विचारधारा के लिए सीमित  प्रश्न नहीं है ,बल्कि यह तो लोकतंत्र के आधार - जन संवाद को ,हतोत्साहित करने का ,एक बहुत ही निंदनीय प्रयास है । इसके पीछे चाहे वजह कोई एक राजनीतिक दल या फिर किसी एक व्यक्ति का ही क्यों ना हो ,इन प्रवृतियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए | किंतु वर्तमान राज्य सरकार व दिल्ली पुलिस के बीच जिस तरह की आपकी तनातनी का माहौल है उसे देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि दिल्ली पुलिस की तरफ से फिलहाल कोई सख्त कदम व नीति अपनाएगी ||

अलबत्ता पिछली कुछ घटनाओं के बाद पुलिस व् संबद्धित संस्थाएं  , सुरक्षा में काफी संजीदा भी दिखाई जरूर देती है  लेकिन निष्कर्ष और कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सार्वजनिक और शीर्ष पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों की शारीरिक वह मानसिक भी सुरक्षा की व्यवस्था जरूरी पुख्ता की जानी चाहिए ||और इसके लिए जरूरी नीतियां बनाई जानी चाहिए |और ऐसे लोगों को भड़काए जाने उकसाये जाने के जिम्मेदार लोगों को भी सख्त शारीरिक दंड दिया जाना चाहिए ,जबकि रिकार्ड के अनुसार यहाँ उल्लेखनीय है कि कभी इसी तरह  जूता फेंक  कर  और  थप्पड़ मार कर सुर्ख़ियों में आने वाले जरनैल सिंह बाद में आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लडे व् विधायक भी बने | ..जो भी बेहद अफसोसनाक प्रवृत्ति है  ये  ....................................



                     कल बात करेंगे ......विश्व पर छा रहे तीसरे विश्व युद्ध के संकट की

शनिवार, 17 सितंबर 2016

पथ्य (दवा) से परहेज़ भली




... एक कहावत है बहुत ही पुरानी और दिलचस्प ,बात यह है कि हमारी हर कहावत के पीछे जो सच छुपा होता है वह हमारे पूर्वजों के अनुभव का निचोड़ होता है तो जैसा कि मैं कह रहा था कि एक कहावत है पथ्य (दवा ) से परहेज भली ||अर्थात सच में देखा जाए तो दिल्ली के वर्तमान हालात ,  जिनमें चारों तरफ चीख पुकार मची हुई है | अस्पतालों में बिस्तरों से लेकर के फर्श तक पर मरीज को चीख पुकार रहे हैं | डॉक्टर दवाइयां सभी बेबस से दिख रहे हैं | जहां तक सरकार व प्रशासन की बात है तो वह पिछले कई वर्षों की तरह सिर्फ एक दूसरे पर दोषारोपण करने कि अपनी पुरानी  पति को दोहरा रहे हैं भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की एक सबसे बड़ी भूल है कि वह ना तो भविष्य के लिए तैयार होता है ना इतिहास में की गई से कोई सबक लेता है लेता है |


 आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि हमारी सरकार ,हमारी व्यवस्था , हमारा समाज ,हमारा परिवार ,सभी इस बात पर तो खूब जोर देते हैं व इस बात की सारी फ़िक्र  रखी जाती है ढेरों जतन किए जाते हैं  ||बीमार पड़ते ही उपचार किए जाने के लिए , किंतु जीवन में कोई बीमार ही ना पड़े या फिर कम से कम रोगों से ग्रस्त हो इस तरह की कोई व्यवस्था इस तरह की कोई सूरत दिखाई ही नहीं देती || बच्चों की किताबें ,बच्चों की शारीरिक शिक्षण कहीं पर भी उसमें इस बात का जवाब नहीं दिया जाता  कि कौन कौन सी  आदतें , किस तरह का खानपान , मौसम के अनुरूप परहेज़ व् सावधानी  आदि का ध्यान रखी जानी चाहिए , यह उनके रोजाना पढने वाले भारी भरकम पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों नहीं होता  | जो पढ़ाई होती है वह भी सालों से रटा रटाया है ,जिसे बच्चे सिर्फ और सिर्फ एक प्रश्न और उत्तर की तरह याद करके आगे बढ़ जाते हैं जीवन में उसे नहीं उतारते ||

हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा नहीं है मुझे याद आता है गांव का एक छोटा सा त्यौहार अगर मैं ठीक हूं तो उसे हम लोग जूडशीतल बुलाते हैं जो शीतल यानि नाम के अनुरूप शीतलता से कुछ सम्बंधित |  यह उन दिनों में मनाया जाता है जिन दिनों  पानी की काफी कमी हो जाती है पेड़ पौधे सूखने लगते हैं और मान्यता यह है कि इस दिन सभी व्यक्ति गांव के छोटे बड़े सभी पेड़ पौधे वनस्पति ,उसकी जड़ों में पानी का कुछ न कुछ अंश जरूर डालते हैं  | लोग अपने दूरदराज के बगीचे में जाकर वहां वृक्षों , पौधों वनस्पति में इस प्रकार पानी डालते हैं मानो अपने परिवार के किसी बुजुर्ग की सेवा कर रहे हों | कहने को तो यह एक त्यौहार है किंतु इसके पीछे विज्ञान को तो देखें तो हम पाएंगे कि इंसान और पारिस्थिति पेड़ पौधों का कितना सुंदर संबंध स्थापित किया गया है ||

 इसी तरह का एक दूसरा प्रसंग याद आता है ऐसा कि बरसात के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बुजुर्ग अक्सर  नीम के पत्तों को पीसकर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर उन्हें सुखा लिया करते थे || जिन्हें बरसात ऋतु के शुरु होने से पहले बड़े बच्चे स्त्री पुरुष सब को खिलाया जाता था  ||इसके पीछे का तर्क यह था कि वह पेट में जाकर के रक्त विकारों को साफ कर देता था यह एक तरह का प्रतिरोधक होता था जो शरीर में जाकर के बरसाती दिनों के फोड़े-फुंसी पित्त कफ्फ आदि उन सब को नियंत्रित करता था| इसके परिणामस्वरूप रोगग्रस्त होने की समस्या बहुत कम हो जाती थी |

स्थानीय सामाजिक संगठनो , सरकारों , प्रशासन और खुद हमें अब आगे बढ़ कर इस दिशा में  पहल करनी होगी इससे पहले कि बहुत देर हो जाए |  और यह करना इतना भी मुश्किल नहीं है कि यदि आज और अभी से शुरु किया जाए तो ज्यादा नहीं सिर्फ पांच से दस वर्षों में ही फर्क स्पष्ट दिखने लगेगा || अपने आसपास सफाई स्वच्छता की आदत ,दैनिक व नियमित दिनचर्या ,संतुलित खानपान ,ज्यादा से ज्यादा शारीरिक श्रम आदि के अतिरिक्त आस-पास उपलब्ध भूमि पर अधिक से अधिक वृक्ष लगाना विशेषकर नीम पीपल आदि जैसे स्वास्थ्यवर्धक वृक्षों की उपस्थिति रोगों के फैलने पनपने को बहुत कम कर देती है।।

देखिए स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है , या तो आप अपना सारा समय श्रम हुआ धन बीमार होने के बाद खुद को निरोग करने के लिए दवाइयों में चिकित्सा में शल्य चिकित्सा में खर्च करें अन्यथा इन सब स्थितियों में पड़ने से पहले ही खुद को स्वस्थ निरोग रखने के प्रति सचेत व सजग होने की आदत डालें यह मैं आज और अभी से करने के लिए इसलिए कह रहा हूं ताकि आने वाली नस्लें स्वाभाविक रूप से इसे एक आदत के रूप में पाएं | इसलिए आज से और अभी से खुद को बीमार ना पडने देने का संकल्प ले और उस अनुरूप व्यवहार करें यही उचित है, यही अनिवार्य है ,और यही आखरी रास्ता है


गुरुवार, 15 सितंबर 2016

अनाथ होती दिल्ली


ये पोस्ट पूरी तरह से मोबाईल से ब्लॉग पोस्ट बना कर प्रकाशित की जा रही है और दूसरी विशेष बात ये कि सारा आलेख (पूरा टैक्स्ट ) मोबाइल के ऑडियो इन पुट से बोल कर टाईप की गयी है , बिलकुल आसानी से





कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक चुटकुला काफी प्रसारित हुआ था जिसमें हमारे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ध्यान मग्न होकर यह कहते हुए दिखाया गया था कि यदि आप से कोई गलती हो जाए तो आप बिल्कुल ना घबराऐं सिर्फ थोड़ी देर तक चुप बैठे और यह सोचो कि यह आरोप आपको किस पर लगाना है।। आज कमोबेश राजधानी दिल्ली की प्रशासकीय और बीमार चिकित्सकीय स्थिति यह इशारा कर रही है कि दिल्ली अनाथ है ।।न कोई मालिक न कोइ  खैर मख्दम......... हैं तो बस चिकनगुनिया , डेंगू , मोहल्ला क्लिनिक की डेढ़ किलोमीटर और अस्पतालों की कई किलोमीटर लम्बी लाईनों में व्यस्त खड़ा तीमारदार और वहीं पस्त पड़ा बीमार ....अनाथ , निर्बल , रोगी और कहीं कहीं मृत भी .....


एक तरफ माननीय न्याय पालिका के फैसलों द्वारा प्रमाणित राज्य प्रमुख माननीय गवर्नर साहब इन चित्रों व समाचारों से गायब नजर आते हैं जिन चित्रों में चीख चीख कर यह बताया व दिखाया जा रहा होता है कि डेंगू मलेरिया व चिकनगुनिया जैसी बीमारियां महामारी का रूप लेती जा रही है और बरसों पहले की तरह लोग मर रहे।। वहीं दूसरी तरफ सरकार के तमाम  मंत्री व अधिकारी  तक किसी ना किसी बहाने ,कोई चुनाव प्रचार के बहाने तो ,कोई प्रशिक्षण के बहाने फील्ड को छोड़कर अन्य स्टेशनों पर व्यस्त हैं और इतना ही नहीं वहां से सेल्फी पोस्ट कर रहे ।

हालात इतने  तक ही बदतर होते तो कोई बात ना थी किंतु इस से भी कहीं अधिक आगे जाकर अधिनस्थ संस्थाएं जैसे कि एंटी करप्शन ब्यूरो व राष्ट्रीय महिला आयोग तक आपसी खींचतान व नोटिस और मुकदमे बाजी में व्यस्त हैं वह तो शुक्र मनाना चाहिए प्रकृति और बरसात का कि पूरे देश भर के हालातों के ठीक उलट राजधानी दिल्ली में अभी भी बहुत अधिक बरसात दर्ज नहीं की गई है अन्यथा पिछले दिनों जरा सी बारिश से उत्पन्न जाम राष्ट्रीय सुर्खी बन गई  थीं ।

 इन परिस्थितियों में भी यदि सभी सार्वजनिक संस्थाएं व सभी सार्वजनिक व्यक्ति  यदि इसी तरह का आचरण करेंगे वह समस्याओं के समाधान से अधिक एक दूसरे पर दोषारोपण वह विफलताओं से सबक सीखने की आदत में लगे रहेंगे तो निसंदेह स्थिति खतरनाक से नारकीय हो जाएगी।

  केंद्र सरकार जो एक तरफ स्वच्छता को एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में लेकर पूरे देश भर में इसे केंद्रित करके अनेकों योजनाएं चला रही है वह भी राजधानी दिल्ली में बढ़ती इस महामारी के प्रति उदासीन वह उपेक्षित व्यवहार कर रही है अफसोस की बात यह है की इन परिस्थितियों का सबसे अधिक शिकार वह इस बदहाली व्यवस्था का नारा सबसे अधिक वही गरीब होता है हो रहा है जो इसने आम आदमी पार्टी पर सबसे ज्यादा विश्वास जताया था अब देखना यह है कि आने वाले समय में कौन लोग यह कौन सी पार्टी कौन से अधिकारी आगे आकर इन स्थितियों से निजात दिला कर दिल्ली वालों को राहत पहुंचा सकेंगे फिलहाल तो दिल्ली वासियों की स्थिति अनाथों जैसी ही है

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