आतंकवाद अब एक समस्या से बढ कर एक विचार का रूप ले चुका है . जानते हैं ,आज जब आर्थिक आतंकवाद , बौद्धिक आतंकवाद ,जहां तक इन जान माल पर हमले के आतंकवाद की बात है तो इसके पक्ष विपक्ष में हममें से बोलने की किसी की भी औकात नहीं है ये ठीक ठीक तो आतंकवादी ही बता सकते हैं कि वे ऐसा करते क्यों हैं , और यकीनन सब अलग अलग वजहें होंगी , मगर निशाना तो वही आम आदमी ही बनता है ,तब ये भी संदेह होता है कि कहीं ये आतंकवादी भी आर्थैक आतंकवादी से जुडे हुए तो नहीं हैं कहीं ? लेकिन फ़िर भी किसी भी सूरत में इसे कुचलना चाहिए क्योंकि कोई भी दलील , इंसानों की जीवन से बडी नहीं हो सकती ॥
इस धमाके के बाद देश के राजनेताओं के बयान , उनकी कार्यशिली, आतंकवाद से निपटने का उनका नज़रिया और रुख , मुआवजे की घोषणा आदि में से ऐसा कुछ समय में आम जनता और सरकार के बीच बढती दूरी का हे ये परिणाम है कि आज कुछ राजनीतिज्ञ इन हमलों पर घोर असंवेदनशील वक्तव्य देने से भी नहीं चूके । रही आम जनता की बात तो उसका अंदाज़ा सिर्फ़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि अस्पतालों में नेताओं की उपस्थिति से हो रही परेशानी से होने वाले गुस्से का भाजन खुद राजनेताओं को भी भुगतना पडा और जनता ने यहां तक सवाल खडे कर दिए कि हर बार किसी बडी समस्या की तरफ़ देश का ध्यान जाता है कोई न कोई आतंकी हमला होता है वो भी सिर्फ़ आम आदमियों को मारने के लिए ।
इस वर्ष का अब तक का ये दसवां आतंकी हमला होने के बावजूद ये बहुत जरूरी हो जाता है कि कुछ जरूरी बातों की उपेक्षा न की जाए । ये ठीक है कि इतने बडे और नितनी बडी जनसंख्या वाले देश में हर आतंकी हमले को रोक पाना बेहद दुरूह कार्य है लेकिन इसकी क्या वजह हो सकती है कि अभी सत्रह माह पहले ही उसी परिसर में आतंकी हमला हुआ होने के बाद भी इतनी आसानी से पुन: उसी स्थान को निशाना बना लिया जाता है । तो क्या यही है सरकार और प्रशासन की वो इच्छाशक्ति जिसके बल पर वो वैश्विक आतंकवाद को खत्म करने की बात करती है । आखिर कहां है देश की लाखों की वर्दीधारी सेना , विशेषकर तब जबकि पता है कि बचाव दिल्ली मुंबई कोलकाता जैसे महानगरों को भी चाक चौबंद कर दें तो बहुत संभल सकती है ।
ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद आतंकी दुनिया में क्या चल रहा होगा ये अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है । अमेरिका , ब्रिटेन , फ़्रांस , जैसे तमाम देश अपनी सुरक्षा व्यवस्था को इतना तो पुख्ता कर चुके हैं कि अब उन्हें इतनी आसानी से निशाना नहीं बनाया जा सकता है । ऐसे में भारत जैसे अव्यवस्थित देश इसलिए भी आतंकियों का पहला विकल्प है क्योंकि पडोस में पाकिस्तान , श्रीलंका जैसे आतंक से ग्रस्त देश मौजूद हैं । यदि ऐसी परिस्थितियां एक आम आदमी भी समझ पा रहा है तो क्या कारण हो सकता अहि कि इसे सरकार व प्रशासन समझ न पाए हों । जो लोग सरकारी नियम कानूनों के बीच से घपले घोटालों की गुंजाइश तलाश लेते हैं उन्हे इसका जरूर एहसास होगा ।
पिछले कुछ धमाके , एक और गंभीर ईशारा कर रहे हैं । कहीं ये हमले किसी बहुत बडी साजिश का एक छोटा सा हिस्सा भर तो नहीं हैं । आज इंसान की कल्पना उसे रोज़ वैज्ञानिक ताकत से बढावा दे रही है ऐसे में क्या ये बिल्कुल असंभव है कि आतंकियों के हाथों कभी परमाणु अस्त्रों जैसे विश्व विनाशक हथियार नहीं लगेगा । भारत में साल की दूसरी छमाही पर्व -त्यौहार , उत्सव , समारोहों का समय होता है इसलिए शहरों में सघनता की संभावना कई गुना बडी होती है , तो फ़िर क्या ये माना जाए कि जैसा कि अमेरिका भी आशंका जता चुका है भारत को भी अगले हमलों के लिए तैयार रहना चाहिए ।
अब बात आम आदमी की भूमिका की । आज आम आदमी को ये अच्छी तरह पता चल चुका है कि इन हमलों का शिकार वही होता है तो फ़िर उसे खुद को बचाने के लिए तैयार होना होगा । हालिया बम हमले में किसी आम आदमी ने ही संदिग्ध वाहन पुलिस को पहुंचाया ( यहां एक बात कहना और जरूरी हो जाती है कि जिन वाहन चोरी की रिपोर्टों को पुलिस दर्ज़ नहीं करती अक्सर वही वाहन इन आतंका घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं , पुलिस की जांच का ये हाल है देश में कि एक स्कूटर , कार तो दूर बस तक बरामद नहीं पर पाती )। आम आदमी को खुद को शिकार बनने से रोकना होगा वो भी खुद को शिकार बनने से रोकना होगा वो भी खुद ही । कोई जरूरी नहीं है कि उत्सवओं , त्यौहारों में बाज़ारों में बेवजह की भीड बढाई जाए , घर से निकलते ही अपना सारा ध्यान सुरक्षित रूप से गंतव्य तक पहुंचने पर लगाएं और बेझिझक पुलिस को हर वो बात बताएं जो आपको खटक रही हो ।