शुक्रवार, 17 जून 2011

अस्वाभाविक -असामयिक मौत का सिलसिला ..आज का मुद्दा




 चित्र गूगल से साभार ,माफ़ी सहित लेकिन हकीकत यही है आज 




किसी भी दिन का समाचार पत्र उठा कर देखा जाए तो एक खबर जरूर रहती है वो है दुर्घटना , अपराध , बीमारी आदि के चपेट में आकर हो रही अस्वाभाविक मौत की खबरें । पिछले एक दशक में इन मौतों का सिलसिला इतना बढ गया है अब ये एक चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है । भारतीय समाज न सिर्फ़ मानव संसाधन के दृष्टिकोण से बल्कि विशेषकर युवाओं की उपस्थिति के कारण पूरे विश्व समुदाय में महत्वपूर्ण स्थिति में है । ऐसे में सडक दुर्घटनाओं  में , नशे और अपराध में बढती उनकी संलिप्तता के कारण तथा खिलंदड व लापरवाह जीवन शैली की वजहों से रोजाना न सिर्फ़ इन आमंत्रित मौतों का सिलसिला बढ रहा है बल्कि इसकी दर इतनी तेज़ गति से बढ रही है कि भविष्य में ये बेहद आत्मघाती साबित हो सकती है । 

इस विषय पर शोध कर रही संस्था "लाईफ़ डिसएपियरिंग " ने पिछले दिनों अपनी सूचनाओं के आधार पर बहुत से चौंकाने वाले तथ्य और आकडे सामने रखे । आंकडों के अनुसार पश्चिमी और पूर्वी देशों में होने वाली अस्वाभाविक मौत के कारण भी सर्वथा भिन्न हैं । पश्चिमी देशों में नशे की बढती लत , आतंकई घटनाएं , व कैंसर एड्स जैसी बीमारियों की चपेट मेम आकर प्रतिवर्ष हज़ारों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं । इसके अलावा एक बडा और प्रमुख कारण खतरनाक शोध कार्यों व दु:साहसिक खेलों का खतरा उठाना भी रहता है इसमें ।


भारत व अन्य विकासशील देशों में सडक दुर्घटनाओं , मानवीय आपदाओं , आतंकी हमलों के अलावा अपराध मेम लिप्तता के कारण प्रतिदिन सैकडों व्यक्तियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड रहा है । इससे अलग बिल्कुल गरीब और अविकसित राष्ट्रों में गरीबी भुखमरी व कुपोषण भी एक बडा कारण साबित होता है , अस्वाभाविक मौतों के लिए । संस्था बताती है कि आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में अस्वाभाविक मौतों की दर बहुत कम है और इसके मुख्य कारण हैं प्राकृतिक आपदाएं और भूमि विवाद के कारण होने वाले अपराध । 

इसके ठीक विपरीत शहरी समाज अपनी बदलती जीवन शैली , नशे का बढता दखल टूटती सामाजिक परंपराएं व संस्थाएं आदि जैसे कारकों की वजह से अस्वाभाविक मौत को आमंत्रण देता सा लगता है । काम के अधिक घंटे , सडकों पर बीतता ज्यादा समय , नशे की नियमितता और फ़िर उसी नशे की हालत में वाहन परिचालन के परिणाम स्वरूप लगातार लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं । शराब के अलावा धूम्रपान , पान , बीडी , तंबाकू , गुटखा आदि के सेवन की बढती प्रवृति कैंसर ,तपेदिक , जैसी बीमाइयों को न्यौता दे रहे हैं , और चिकित्सा सुविधाओं के अत्यधिक महंगे होने के कारण स्थिति और भी अधिक गंभीर होती जा रही है । विशेषकर युवाओं में इसका बढता चलन सबसे अधिक चिंता का विषय है । 

संस्था बताती है कि इस घटनाक्रम में सबसे अधिक चिंतनीय बात ये है कि इन अस्वाभाविक मौतों का दोहरा परिणाम समाज को झेलना पडता है । जब किसी परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु किसी भी अस्वाभाविक परिस्थितियों में होती है तो परिवार के सदस्यों को गंभीर शारीरिक मानसिक आघात लगता है । संस्था के अनुसार ,पिछले दो दशकों में एकल परिवार का चलन अनिवार्य नियम सा हो गया और इसीलिए जब ऐसे छोटे  परिवारों में ,विशेषकर किसी युवा सदस्य की, बच्चों की मौत हो जाती है तो पूरे परिवार में एक बिखराव आ जाता है । कई बार तो ये इतना तीव्र सदमा होता है कि परिवार के अन्य सदस्य के लिए भी किसी अनापेक्षित अस्वाभाविक मौत का कारण बन जाता है ।

किसी भी देश के विकास के लिए ये बहुत जरूरी होता है कि वो अपने मानव संसाधन के समुचित उपयोग के उपाय करे बल्कि उनकी सुरक्षा व सरंक्षण को भी सुनिश्चित करना उसका पहला कर्त्वय है । संस्था ने न सिर्फ़ इसके कारणों व परिणामों पर स्पष्ट विचार रखे बल्कि लगभग चेतावनी वाली शैली में विश्व समुदाय को आगाह किया है कि भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की बढती दर , आतंकी हमलों की संभावना तथा पानी , उर्जा , पेट्रोल आदि की कमी होने जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के मद्देनज़र अभी से गंभीरतापूर्वक इस पर ध्यान दिया जाए ।

संस्था ने इस स्थिति के कारणों पर बारीकी से अधय्यन करने के बाद इसे रोकने , कम करने के लिए बहुत से उपाय सुझाए हैं । संस्था कहती है कि सरकारें आर्थिक लाभ के लिए , सिगरेट , शराब , तंबाकू के उत्पादों का विक्रय करवाती है इसका परिणाम ये हो रहा है कि धीरे धीरे करके पूरा समाज ही नशे की गिरफ़्त में चला जा रहा है । आज भारत में भी स्थिति ऐसी होती जा रही है कि पुरूषों में कोई मद्यपान या धूम्रपान न करता हो तो वो कौतुहल का पात्र बन जाता है । और अब ये चलन बढते बढते महिला समाज में भी घर करता जा रहा है । नई पीढी अपने अभिभावकों को इसमें लिप्त पाकर बहुत पहले ही इसकी शुरूआत कर देते हैं , जिसका परिणाम ये होता है कि बहुत जल्दी ही वो उस सीमा को लांघ जाते हैं जहां से ये जानलेवा साबित होने लगता है । भारत में लगभग ६७ प्रतिशत सडक दुर्घटनाओं की  वजह शराब पीकर गाडी चलाना ही है ।


तो यदि इस पर चरणबद्ध तरीके से काबू पाया जाए तो इस दर को काफ़ी कम किया जा सकता है । चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता सुलभ करने से घायल व्यक्तियों के उपचार में तीव्रता आएगी और ये बहुत से उन जानों को मौत के मुंह में से खीच लाएगी जो अब इसके अभाव में प्रतिदिन मर रहे हैं । आपातकालीन व्यवस्था को अचूक और निर्बाध किए जाने पर भी काम किया जाना चाहिए । इसके अलावा और भी बहुत से मुद्दों , जीवन शैली में बदलाव और प्रकृति के सम्मान की परंपरा को बढावा देना , जीवन मूल्यों को समझने और उनका सम्मान किए जाने की भावना को विकसित किए जाने जैसे उपाय बताए । अब देखना ये है कि सरकारें कब चेतती हैं और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए काम करना शुरू करती हैं ।




गुरुवार, 16 जून 2011

असुरक्षित पडोस : गंभीर खतरा ....आज का मुद्दा





ऐसा कहा जाता है कि यदि आपके पडोस में आग लगी हुई हो तो देर सवेर उसकी आंच आपके घर तक भी आने के संभावना प्रबल हो जाती है । फ़िर भारत की नियति तो ऐसी बन चुकी है कि उसके सभी पडोसी राष्ट्र या तो शत्रुवत हैं या इतने कमज़ोर कि वे हमेशा ही भारत के लिए चिंता का सबब बने रहते हैं । भारत के भौगोलिक नक्शे से अलग होकर बने देश पाकिस्तान बांग्लादेश की अपनी खुद की स्थिति बेहद खराब होते जाने के बावजूद भारत का अहित ही उनके मुख्य एजेंडे में रहता है हमेशा ।नेपाल , श्रीलंका , बर्मा , एवं तिब्बत भूटान जैसे अपनी अंदरूनी समस्याओं पर ही फ़िलहाल काबू नहीं पा सके हैं और उन्हें भारत जैसे विकासशील देश से भी मदद की दरकार हमेशा बनी रहती है ।


पाकिस्तान की राजनीतिक व आर्थिक स्थिति प्रारंभ से ही बहुत अधिक चिंतनीय रही है और पिछले कुछ वर्षों में तो ये स्थिति चिंतनीय से बदलकर दयनीय हो गई । पिछले कुछ दशकों में पाकिस्तान में लगातार उत्पन्न हुई राजनैतिक अस्थिरता की स्थिति , अलगाबवादियों व चरमपंथियों का बढता वर्चस्व तथा प्रतिदिन चढता करोडों रुपये का विदेशी कर्ज़ का ब्याज़ ही प्रति मिनट हज़ारों डॉलर की रफ़्तार से बढ रहा है , जिसे किसी भी परिस्थिति में किसी सहायता से उतारा नहीं जा सकेगा । 


भारतीय परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान की अस्थिरता से पडने वाले प्रभावों को देखें तो सबसे पहली और अहम समस्या है आतंकी हमलो की आशंका । अब ये बात अनेकों बार प्रमाणित हो चुकी है कि पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसियां , सुरक्षा एजेंसियों के साथ साथ उसके करी शीर्ष अधिकारी व राजनीतिज्ञ , भारत , अमेरिका , और ब्रिटेन जैसे देशों के विरुद्द्ध संलिप्त आतंकियों को समर्थन देते रहे हैं । विश्व के सबसे दुर्दांत हत्यारे आतंकी ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में छुपा होना एक बार फ़िर इसे साबित कर गया । इन हालातों में जब भारत के साथ कश्मीर मसले पर पहले ही दोनों देश आमने सामने होते आए हैं तो जब उद्देश्य ही विश्व शांति को खतरा पहुंचाना हो तो भारत ही सबसे पहला और आसान निशाना बचता है । मुंबई पर हुए दु:साहसी हमले ने इसक ईशारा भी कर दिया है । ओसामा की पाकिस्तान में मौजूदगी और फ़िर मौत के बाद से पाकिस्तान को हमेशा भारी-भरकम आर्थिक सहायता व सामरिक सहयोग देने वाले अमेरिका के नज़रिए में खासा बदलाव आया है । आज पाकिस्तान में भूख-बेरोजगारी, महंगाई के साथ कट्टरपंथ भी अपने चरम पर है और पूरे देश में एक हताशा फ़ैली हुई है । इसलेइ भारत को अपनी एक आंख हमेशा अपने इस दोस्त दुश्मन पर रखने की जरूरत है । 


यूरोपीय देश एवं अमेरिकी देशों के समूह के लिए एशिया में और शायद पूरे विश्व में यदि कोई एक अकेला देश सबसे बडा खतरा है तो वो है चीन । मौजूदा समय में चीन ही ऐसा अकेला देश है जो वैश्वीकरन के इस युग में भी सिर्फ़ अपने हितों और स्वार्थ से ही संबंधित आचरण करता है । यहां तक कि अतर्राष्ट्रीय मंचों पर और बडी छोटी घटनाओं पर भी उसका आधिकारिक/अनाधिकारिक बयान तक नहीं आता । सिंगापुर और तिब्बत देशों की समस्या ,विलय , विखंडन आदि के समय उसका दृष्टिकोण और रवैया पूरा विश्व देख ही चुका है । वर्तमान वैश्विक परिदृश्य  में चीन का नज़रिया इसी तथ्य से पता चल जाता है कि ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद चीन की तरफ़ से इस तरह का बयान आया था कि यदि अब भविष्य में अमेरिका इस तरह का कोई आक्रम्ण पाकिस्तान के ऊपर करता है तो चीन पाकिस्तान के साथ खडा होगा । शायद ही अब तक ये बात गंभीरतापूर्वक सोची गई है कि विश्व का लगभग हर विकसित और विकासशील देश आज आतंक के निशाने पर है , और उसकी पीडा झेल रहा है लेकिन चीन इन सबसे खुद को अलग रखे हुए है । क्या ये महज़ इत्तेफ़ाक है कि किसी आतंकी संगठन के निशाने पर चीन नहीं है । यहां ये बताना भी उचित होगा कि अभी हाल ही में चीनी हैकरों ने अमेरिका खुफ़िया सेवा और सुरक्षा सेवा के अंतर्जालीय खातों में सेंधमारी की है । क्या इससे मिली जानकारियों का फ़ायद वे उठाएंगे या पैसे के बदले वे कहीं आगे सरका देंगे । निश्चय ही ये चिंता कहीं न कहीं विश्व शांति की सुरक्षा के आकांक्षी लोगों को भी होगी । 


भारत-चीन संबंध शुरू से ही अविश्वास और संदेह से ग्रस्त रहे हैं । ये संबंध और अधिक खराब स्थिति में तब पहुंचे जब "हिंदी चीनी भाई-भाई " कहते कहते चीन ने भारत पर आक्रम्ण करके भारत की बहुत बडी जमीन हथिया ली जो आज तक चीन के कब्जे में ही है । अब भी अक्सर कभी नियंत्रण रेखा को पार करके , कभी भारतीय प्रदेश , भूभाग को अपने नक्शे में दिखाकर तो कभी किसी भारतीय को नत्थी वीज़ा देन जैसे कार्यों से चीन भारत में अस्थिरता फ़ैलाने का प्रयास करता ही रहता है । अमेरिका सहित विश्व समुदाय को भी चीन के नक्काली कारोबार और अंतर्जाल हैकरों ने खासा परेशान किया हुआ है । 


भारत इन दिनों राजनीतिक संवेदनशीलता और सामाजिक परिवर्तन के नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है । आम जनता और सत्ता के बीच न सिर्फ़ विचारों का बल्कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आमने सामने का संघर्ष शुरू हो चुका है । व्यवस्था के खिलाफ़ जनमानस का बढता असंतोष और सुधार के बजाय दमन का रुख अख्तियार करने वाली सरकार का रवैया देखकर ये अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में कठिन परिस्थितियां उत्पन्न होंगी । भारत का अहित सोचने वाली तमाम शक्तियों , देशों , संगठनों के लिए ये अवसर बहुत ही मह्त्वपूर्ण होगा । वे निश्चित रूप से देश में चल र्हे इस उठापटक का फ़ायदा उठा कर अपने मंसूबे पूरा करने का प्रयास करेंगे । ऐसे में न सिर्फ़ सरकार , प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों बल्कि सिविल सोसायटी व ऐसे तमाम जनसमूहों को भी सजग व सचेत रहना होगा । देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार तमाम सुरक्षा संस्ताओं को अपने टॉप एलर्ट मोड (Top Alert Mode )में रहने के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए । 

बुधवार, 8 जून 2011

गरीब जनता के अमीर प्रतिनिधि ....आज का मुद्दा




शंकर जी द्वारा चित्रित कार्टून ( साभार ) 




आज विश्च अर्थव्यवस्था में बेशक भारत का स्थान और मुकाम ऐसा हो गया है कि उसकी हठात ही उपेक्षा नहीं की जा सकती । दूसरा बडा सच ये है कि भविष्य की शक्तशाली अर्थव्यवस्थाओं में भी भारत की गणना की जा रही है । देश मेंबढते हुए बाज़ार की संभावनाओं के मद्देनज़र ये आकलन बिल्कुल ठीक जान पडता है । आज देश चिकित्सा, विज्ञान , शोध , शिक्षा आदि हर क्षेत्र में निरंतर विकास की ओर अग्रसर है । किंतु इसके बावजूद भारत की गिनती धनी व संपन्न राष्ट्र में अभी नहीं की जा स्कती है । आज भी देश का एक बहुत बडा वर्ग शिक्षा , गरीबी , और यहां तक कि भूख की बुनियादी समस्या से जूझ रहा है । आज भी देश में प्रति वर्ष सैकडों गरीबों की मृत्यु भूख और कुपोषण से हो रही है , जिसके लिए थकहार कर सर्वोच्च न्यायालय को सरकार को सख्त निर्देश देने पडे । 

इस स्थिति में जब आम जनता ये देखती है कि एक तरफ़ सरकार रोज़ नए नए करों की संभावनाएं तलाश कर राजकोष को भरने का जुगत लगाती है । वहीं दूसरी तरफ़ वो संचित राजकोष के धन की बर्बादी के प्रति न सिर्फ़ घोर उदासीन है बल्कि इसमें दोहरी सेंधमारी किए जा रहे हैं । पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक भ्रष्टाचार , घपले , घोटाले किए जाने के लिए एक अजीब सी रेस जैसी लगी हुई है । किसी को न तो किसी कानून का भय है न ही जनता की भावना और विश्वास की फ़िक्र । यदि घपलों -घोटालों को थोडी देर के लिए आपराधिक कृत्य की श्रेणी में रखकर व सभी राजनीतिज्ञों को इसमें सम्मिलित नहीं मानते हुए भी यदि कुछ तथ्यों पर गौर करें तो वो स्थिति भी आज कम भयावह नहीं है । 

समाजसेवा का पर्याय मानी जाने वाली राजनीति आज न तो समाज के करीब रही न सेवा के । भारत जैसे गरीब देश में भी आम चुनाव के नाम पर जितना पैसा खर्च किया जाता है यदि उसका आकलन किया जाए तो लगभग उतने पैसों से कम से कम दो शहरों का संपूर्ण विकास किया जा सकता है । एक वक्त हुआ करता था जब देश के सबसे बडे पदों पर बैठे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक अपने वेतन को हाथ भी नहीं लगाते थे । अब इन आदर्शो और मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है । आज जनसेवा के लिए बने और बनाए ओहदों में से कोई भी वेतन-भत्तों , सुख सुविधा अधिकारों के बिना नहीं है । आज इन तमाम जनप्रतिनिधियों को न सिर्फ़ वेतन के रूप में मोटी रकम दी जा रही है बल्कि यात्रा भत्ता, बिजली , पानी , दफ़्तर का रख-रखाव आदि के नाम पर लाखों रुपए की रियायत दी जाती है । न सिर्फ़ इन जनप्रतिनिधियों पर बल्कि इनसे संबंधित सभी विभागों , संस्थाओं इनसे जुडे सुरक्षा अधिकारियों के लाव लश्कर इत्यादि पर भी भारी भरकम खर्च किया जा रहा है । सबसे अधिक दुख की बात ये है कि सारा खर्च उसी पैसे से किया जा रहा है जो सरकार प्रति वर्ष नए नए कर लगाकर आम आदमी से वसूल रही है ।  

इन जनप्रतिनिधियों से आज आम जनता को दोहरी शिकायत है । पहली शिकायत तो ये कि इतना सुविधा संपन्न कर दिए जाने के बावजूद भी ये अपने कार्य और दायित्व को निभाना तो दूर इनमें से बहुतायत प्रतिनिधि तो निर्धारित सत्र तक में भाग नहीं लेते हैं । स्थिति ऐसी है कि प्रति वर्ष विभिन्न सत्रों के दौरान बाधित की जाने वाली कार्यवाहियों का दुष्परिणाम ये निकलता है बनने वाले कानून भी सालों साल लटकते चले जाते हैं या कि जानबूझ कर ऐसे हालात बनाए जाते हैं कि उन कानूनों को पास करने से बचा जा सके । इससे अलग इन विभिन्न सत्रों के दौरान किया गया सारा खर्च व्यर्थ चला जाता है । इस दौरान हुए खर्च का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है इस दौरान कैंटीन में उपलभ्द कराए जाने वाले भोजन की थाली की कीमत पांच या दस रुपए होती है जबकि वास्तव में उसकी कीमत उससे तीस चालीस गुना अधिक होती है ।  न सिर्फ़ भोजन बल्कि प्रति वर्ष इन जनसेवकों को जाने क्या सोच कर रियायती दरों और मुफ़्त बिजली , पानी , यात्रा आदि की सुविधाएं दी जाती हैं , जबकि इसका हकदार सबसे पहले देश का एक गरीब होना चाहिए । 


अब समय आ गया है कि जनता को , अपने जनप्रतिनिधियों से अपेक्षाएं बढानी चाहिए , उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर कौन सी न्यूनतम योग्यता है वो जो उन्हें आपका प्रतिनिधि बनाने के काबिल बनाती है । इन तमाम जनसेवकों के काम का रिपोर्टकार्ड जनता को तैयार करना चाहिए और उसीके आधार पर उन्हें न सिर्फ़ उनका वेतन , उनके अधिकार बल्कि आगे बने रहने का हक भी , सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता ही निर्धारित करे । अब ये बहुत जरूरी हो गया है कि जनसेवकों को ये समझाया जाए कि देश का प्रतिनिधि वैसा ही रहेगा , करेगा जैसा कि देश की जनता रहती सोचती है । एक सेवक को हर हाल में अब स्वामी और तानाशाह स्वामी बनने से रोकना ही होगा ।

बुधवार, 1 जून 2011

शिकायत तो करिए जनाब ....आज का मुद्दा






अपने दिल पर हाथ रख कर बताइए कि अब तक आप कितनी बार , किसी दफ़्तर , बैंक , स्कूल , बस , या रेल की शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका पर अपनी शिकायत या सुझाव दे चुके हैं । अगर ये प्रश्न भारत की आम जनता से पूछा जाए , तो जवाब होगा , शिकायत और सुझाव पुस्तिका ...ये क्या होता है ..लगभग चालीस प्रतिशत , हां जानते तो हैं लेकिन कभी किया नहीं ..पचास प्रतिशत ..जिन्होंने किया या फ़िर कि चाह कर भी नहीं कर पाए क्योंकि शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका उन्हें लाख सर पटकने पर भी नहीं मिली । हो सकता है कि आंकडा थोडा सा इधर उधर हो लेकिन हालात कमोबेश ऐसे ही है ।


सुझाव और शिकायत पुस्तिका का रिवाज़ जहां भी स्थापित हुआ होगा वहां उसके पीछे एक ही उद्देश्य निहित होगा कि , संबंधित संस्था/संस्थान में व्याप्त कमियों को बाहर लाना और जिनकी वजह से वो कमियां आ रही हैं उनके बारे में संस्था/संस्थान को पता होना ताकि वो एक साथ दो मोर्चों पर आराम से नीति बना सके । ये परिकल्पना तो बहुत अच्छी है मूल रूप से ,लेकिन जितनी आसानी से इसे प्रशासक दफ़न करते रहे हैं ऐसा लग रहा है मानो समाज को न तो अब सरकार और प्रशासन से कोई शिकायत है और न ही उसे अच्छी बुरी सलाह देने की कोई फ़िक्र , तो क्या अब ये सही वक्त नहीं है कि उस सो चुकी परंपरा को झिंझोड के जगाया जाए , और उस पुस्तिका को इतना भर दिया जाए कि जब सरकार बेशर्मी से अपना रिपोर्टकार्ड जारी करे तो जनता द्वारा दर्ज़ की गई शिकायतें उसे बता सकें कि सरकार कब कहा फ़ेल हुई ।


सरकारी नियमों के अनुसार तो हर दफ़्तर , सार्वजनिक कार्यालय , परिवहन व्यवस्थाओं से लेकर , खूबसूरत इमारतों , सुंदर उपवनों , और लगभग हर जगह ही शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका का प्रावधान है । निजि क्षेत्रों में तो , बाकायदा इसके लिए अलग से विशेष विभाग एवं इसे सुनने और निपटाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों को रखा जाता है , जो ग्राहकों की समस्याओं को सुन कर उनका निदान निकालने में ग्राहक की सहायता करते हैं । सार्वजनिक क्षेत्रों में इसका ठीक उलटा है । यहां एक दिलचस्प तथ्य की ओर ईशारा करना ठीक हो शायद , सरकार द्वारा चालित हर बस और रेल में शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका यात्रियों को उपलब्ध करवाने का नियम है , और ये रखी भी जाती है । किंतु लाख सर पटकने के बावजूद भी संबंधित कर्मी आपको वो पुस्तिका उपलब्ध नहीं करवाते हैं । कारण स्पष्ट है कि , आपकी वहां पर लिखी शिकायत उस कर्मी से सर पर गाज बनके गिर सकती है । यही कारण है कि वो आपको किसी भी परिस्थिति में शिकायत पुस्तिका उपलब्ध ही नहीं करवाएगा । ऐसी ही परेशानी विभिन्न दफ़्तरों में भी आती है । वहां और अधिक कठिनाई और गुस्सा इस बात पर आता है आम लोगों को यदि को चाहता कि किसी की शिकायत खुद जाकर किसी अधिकारी , या वरिष्ठ कर्मी से करे तो उसे ऐसा भी नहीं करने दिया जाता है । 


लेकिन इससे जुडा एक अन्य पहलू यही है कि लोग शिकायत और सुझाव के इस नायाब हथियार के प्रति उदासीन और उपेक्षा का भाव रखते हैं । आम लोगों ने तो जैसे लडने का माद्दा ही छोड दिया है । अगर आज भी दस में से पांच विरोध का रास्ता चुन लें , न सिर्फ़ चुनें बल्कि पुरजोर तरीके से इन शिकायत व्यवस्थाओं का का उपयोग करते हुए सारी गलत बातों को बार बार सामने लाएं तो यकीनन ये बात माहौल बदलने में कारगर साबित होगी । सरकार और प्रशासन को भी देखना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि , अन्य विकल्पों पर इतनी अधिक शिकायत दर्ज़ करवाने के बावजूद सालों साल तक शिकायत पुस्तिका कोरी कैसे रह जाती है या उसे जानबूझ कर कोरा ही रहने दिया जाता है । तो आगे बढिए और दर्ज़ कराइए अपनी हर शिकायत को ...आप करेंगे न ॥
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