आज भ्रष्टाचार अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है इसलिए जैसा कि कहा गया है कि जब पाप का घडा जब भर जाता है तो उसका चटकना तय हो जाता है । आज हर तरफ़ एक ही मुद्दा बहस का मुद्दा है , सबके सामने एक ही लडाई है । भ्रष्टाचारियों के सामने अपना दामन बचाने की चुनौती है तो दूसरे पाले में खडे लोगों के सामने भ्रष्टाचार की बखिया उधेडने की धुन । आज चाहे इसके लिए तात्कालिक रूप से अन्ना हज़ारे के जनांदोलन ने एक उत्प्रेरक का काम किया है और अब सभी बनने वाले जन लोकपाल विधेयक को भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस्तेमाल किए जाने वाले डंडे की तरह देख रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी अगर ये न होता तो कोई और कारण सामने आ जाता । बेशक इसमें कोई शक नहीं कि भारत में भ्रष्टाचार ने उस वटवृक्ष का रूप ले लिया है जिसकी न जड का पता चलता है न ही शाखाओं का , और सब के सब ..हां सब के सब कमोबेश इसमें शामिल हैं या जबरन करवाए जा रहे हैं । लेकिन कुछ लोग अब भी चट्टान की तरह खडे हो जाते हैं इस पूरी व्यवस्था के खिलाफ़ , भ्रष्टाचार के जंगल में मशाल जलाए उसे फ़ूंक डालने के लिए । आम आदमी भी अन्ना के जनादोलन के बाद ये सोचने पर मजबूर हो गया है कि अब वो इस लडाई में कब तक निष्क्रिय की भूमिका में रहेगा । आम लोगों के सामने सबसे बडी दुविधा यही आ रही है कि आखिर वो ऐसा क्या करें कि भ्रष्टाचार उन्मूलन की इस लडाई में उनका योगदान तय हो सके । हालांकि ये लडाई बहुत ही बडी और विस्तृत है लेकिन फ़िर भी छोटे छोटे प्रयासों से इस लडाई की धार को तेज़ किया जा सकता है ।
सूचना के अधिकार के उपयोग को प्रोत्साहन :- वैसे तो इस हथियार का उपयोग करके आजकल एक आम आदमी भी सरकार , प्रशासन , पुलिस के हलक में हाथ डाल के ऐसी ऐसी जानकारियां सामने ला रहा है कि सरकार और उसके भ्रष्ट नुमाईंदों को दस्त और पेचिश लगी हुई है । लेकिन अभी भी न तो इस अधिकार का व्यापक उपयोग किया जा रहा है और दूसरी बात ये है कि अब भी लोग इसका ज्यादा उपयोग निजि हित की सूचनाओं के लिए कर रहे हैं ( वैसे इन सूचनाओं के बहाने भी जानकारियां जो निकल रही हैं उनमें भी कहीं कहीं जनहित जुड ही जाता है ) , लेकिन यदि हर सरकारी कार्यालय , दफ़्तर , संस्थान में सूचना के अधिकार के तरह आवेदनों की बाढ लगा देनी चाहिए । वो एक एक चीज़ बाहर आनी चाहिए जिस पर न तो अब तक किसी की नज़र पडी है और न ही पडने दी गई है । उन कुर्सियों के एक एक पाए के खडे होने तक की जानकारी मांग लेनी चाहिए आम जनता को जिस पर बैठ कर और टांगे फ़ैला कर आज कर्मचारी , उद्योगपति , सभी भ्रष्टाचार की गंगा बहा रहे हैं । ये ज्यादा मुश्किल भी नहीं है और बहुत ज्यादा आर्थिक बोझ डालने वाला भी नहीं है । हालांकि इस दिशा में बहुत से स्वयं सेवी संस्थाएं और कार्यकर्ता सक्रिय हैं लेकिन वे नाकाफ़ी हैं । इस प्रवाह को प्रहार का शक्ल दीजीए और कोहराम मचा दीजीए ....। इतना कि सरकारी दफ़्तर में बैठे हर बेइमान नुमाइंदे के सर पे ये एक तलवार की तरह लटके ।
कैमरों /वीडियोग्राफ़ी के चलन को अनिवार्य किया जाए :- अभी कुछ समय पहले जब कुछ समाचार चैनलों ने स्टिंग ऑपरेशन करके बडे बडे सरकारी अधिकारियों , भ्रष्ट कर्मचारियों की काली करतूत को सरेआम लोगों के सामने रखा था तो उस मुहिम ने भी गजब का समा बांधा था । ये अलग बात है कि स्टिंग ऑपरेशन में पकडे और घूस लेते देते दिखाए गए उन तमाम अधिकारियों का क्या हुआ , उन्हें कोई सज़ा भी मिली या नहीं इसकी सुध नहीं ली गई , लेकिन इसके बावजूद ये बात उस प्रक्रिया में सामने तो जरूर आई कि भ्रष्टाचार को अगर नंगा किया जाए तो शायद थोडा सा डर उनमें तो जरूर बैठ जाता है जो नंगे होने से बचे होते हैं । हर दफ़्तर , महकमे , संस्थान में कुछ खास स्थान , कुछ खास सीटें ही वो होती हैं जिनपर घूस लेने देने , सारे अविधिक काम किए कराए जाने की गुंजाईश ज्यादा होती है तो फ़िर उस चप्पे चप्पे को कैमरे की नज़र में ले आना चाहिए और उसका प्रसारण सीधे जनता के हद में होना चाहिए । हालांकि ये बहुत ही खर्चीला उपाय है और जो सरकार संसद तक की कार्यवाही को जस का तस सिर्फ़ इस वजह से नहीं दिखाती क्योंकि उसे डर है कि जनता जब खुद अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की हरकतें , उनका आचरण , उनका व्यवहार और उनकी भाषा देखेगी तो अगले चुनाव में वे जनता के सामने जाकर उनसे आंख भी नहीं मिला सकेंगे । लेकिन ऐसा प्रयास तो किया ही जा सकता है कि कुछ बहुत ही भ्रष्ट और दलालखोरी का अड्डा बन चुके कार्यालयों , जैसे अदालत , राशन , पासपोर्ट, लाईसेंस आदि के दफ़्तर आदि को पूरी तरह निगेहबानी की जद में लाया जाए ।
विभीषणों को प्रोत्साहन :- कहते हैं कि रावण के वध के लिए विभीषण का राम की सेना के साथ आ मिलना बहुत ही जरूरी था और आज भ्रष्टाचार भी रावण का ही रूप ले चुका है तो इसलिए अगर भीतर ढके छुपे रावण को बाहर लाना है तो हर संस्थान में छुपे विभीषणों को किसी भी तरह से चाहे लालच से , चाहे उकसा कर , डरा कर , या किसी भी तरह से एक बार इस बात के लिए तैयार कर लिया जाए कि वे अंदर चल रहे सारे गोलमाल की खबर बाहर निकालें तो फ़िर जनता का बहुत सारा काम आसान हो जाएगा । ये ठीक उस तरह का उपाय है जैसा कि पुलिस किसी बडे अपराधी को सज़ा दिलवाने के लिए उसी के किसी साथी को सरकारी गवाह के रूप में तोड कर उसी अपराधी के खिलाफ़ इस्तेमाल करती है । इन विभीषणों ने ही आज विकिलीक्ज़ को इतनी ताकत देदी कि वो विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका तक के लिए चिंता का सबब बन गया । इस काम के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लडने वाली संस्थाओं , उसके खिलाफ़ सबूत जुटाने वाले पत्रकारों , को उन विभीषणों की तलाश करके उनसे मिली जानकारी का उपयोग बडे घपले घोटालों , बेइमानों के सूत्र को पकडने के करना चाहिए ।
शिकायत /मनाही के आचरण को बढावा देना :- आज भ्रष्टाचार अगर सुरसा की तरह बन बढ गई है तो उसका एक सबसे अहम कारण ये है कि , आम लोग लडने की ,मना करने की , जूझने की आदत को लगभग तिलांजलि दे चुके हैं , सबको बस आसानी से अपना काम करवाना है , वो भी जितनी जल्दी से जल्दी हो जाए । आंकडे बताते हैं कि भारत में लगभग साठ प्रतिशत आम लोग जायज़ काम को करवाने के लिए भी रिश्वत सिर्फ़ इसलिए देते हैं क्योंकि वे इंतज़ार नहीं कर सकते । भारत की जनसंख्या अधिक होने के कारण आज हर जगह आदमी कतार मे नज़र आता है , दुकान से लेकर दफ़्तर तक , बस रेल , सडक , स्कूल , सिनेमा , हर जगह कतारें ही कतारें तो अगर सचमुच ही भ्रष्टाचार को समाप्त करना है तो फ़िर आम आदमी को भी कतार में लगने और अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने की आदत डालनी होगी ।
तकनीक के उपयोग को बढावा :- पश्चिमी देशों ने भ्रष्टाचार से लडने के लिए जिस एक तंत्र को प्रभावी रूप से अपनाया वो था तकनीक का उपयोग । पश्चिमी देशों ने सूचना , संचार ,कंप्यूटर प्रणाली के सहारे एक एक जानकारी , एक एक सुविधाओं , सूचनाओं को तकनीक से जोड कर सब कुछ जनता के सामने पारदर्शी कर दिया । इसका परिणाम ये हुआ कि कोई चाहकर भी न तो उसमें कोई हेरफ़ेर कर सकता था न ही उन्हें कमाई का ज़रिया बना सकता था । भारत में भी इसकी शुरूआत हो तो चुकी है किंतु अपेक्षित रफ़्तार से नहीं है और उससे बडी बात ये कि अधिकांशत: वे सब आऊटडेटेड होने के कारण भ्रष्टाचार की गुंजाईश छोडती सी लगती हैं , उदाहरण के भारतीय रेल का कंप्यूटरीकण होने के बावजूद रेल आरक्षण में होने वाला हेरफ़ेर । जबकि अदालतों , बैंकों , और बहुत से अन्य कार्यालयों में हो रही कंप्यूटरीकरण की प्रकिया ने कुछ क्षेत्रों में भ्रष्टाचार की गुंजाईश को कम करना शुरू कर दिया है । सरकार द्वारा आमंत्रित की जाने वाली निविदाओं (टेंडरों) , प्रति योजना के आय और व्यय का ब्यौरा , सरकार द्वारा खर्च की जा रही राशि का पूरा ब्यौरा यदि सब कुछ यदि इंटरनेट पर डाला जाए और आम जनता की पहुंच में ला दिया जाए तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
इसके अलावा आम आदमी , पत्र द्वारा , लेख द्वारा , संगठनों द्वारा और स्वयं सेवी संस्थाओं के सहारे इस लडाई आगे बढा सकते हैं । सबसे जरूरी बात है भ्रष्टाचार को पूरी तरह उखाड फ़ेंकने के लिए माहौल और मानसिकता को बरकरार रखना ।
आपसे सहमत।
जवाब देंहटाएंlo ji maar diya humne mukka .... jankari bhari post ke liye sukriya "
जवाब देंहटाएं" ajay bhai aapne jin muddoan ko uthaye hai ve wakai me sochane per majboor kar dete hai ..aur yahan per aapki prastuti bhi lajawab rahi hai "
- http://eksacchai.blogspot.com
सार्थक लेखन ..विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंसबसे जरूरी बात है भ्रष्टाचार को पूरी तरह उखाड फ़ेंकने के लिए माहौल और मानसिकता को बरकरार रखना
जवाब देंहटाएं-बिल्कुल सही कहा...उम्दा आलेख.
बिलकुल सही लिखा है... पूर्णत: सहमत हूँ!
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत हूँ ..उड़न जी की टीप पर गौर फरमाए...
जवाब देंहटाएंउत्तम चिन्तन!
जवाब देंहटाएंZARURAT ISKIMMANSIKTA PE CHOT KARNE KI HAI. AAPKE SUJHAV KABULE TAREEF HAIN.
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉ ग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं का अपमान!
हद्द करते हैं झा जी। सब गुलाब ही गुलाब हो जाए तो क्या मज़ा रह जाएगा!
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार जब सीमाएं लांघ जाये तो लेखको का दायित्व बहुत बढ़ जाता है समाज को झकझोरना उनकी जिम्मेदारी है
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी,मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे.ऐसा मेरा विश्वास है.
जवाब देंहटाएं