शराब के लिए लगी ही लाइन
अचानक से बिना किसी बहुत बड़ी योजना को बनाए , बिना किसी ठोस चिकित्सकीय तैयारी के , और बिना किसी बहुत अचूक औषधि के देशबंदी को तीसरे विस्तार दिए जाने के बावजूद जिस तरह से पिछले इतने दिनों से इस लड़ाई से लड़ने के लिए जो लोग अपने अपने घरों में बंद होकर देश प्रशासन और समाज और खुद को भी बचाए रखे हुए लोगों की भावनाओं और उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया गया और जा रहा है |
यदि एक पल को उसे मैं भूल भी जाऊं तो भी जब मैं उन हज़ारों चिकित्सकों , नर्सों , पुलिस वालों और कोरोना की लड़ाई में अपनी जान की बाजी स्वेच्छा से लगाने वालों और उनके घर परिवार वालों के बारे में सोच कर यही समझ पा रहा हूँ कि इस भूल .व्यग्रता ने उनकी मुश्किलें कितनी बढ़ा दी हैं |
दूसरी तरफ विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार का भी , अब रोजाना बहुत तेज़ी से कोरोना पीड़ितों की बढ़ रही संख्या , मौत के बढ़ते आंकड़ों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता भी बहुत ही निराशाजनक है |
और फिर सरकारों को ही अकेले क्यूँ दोष दिया जाए जो देश अभी कुछ दिनों पहले तक रामायण देख कर लहालोट हुआ जा रहा था ऐसा जता और बता रहा था मानो राम राज्य आ ही गया | समाज के गरीब मजदूर को बढ़ चढ़ कर खिलाते हुए दया का सागर बना हुआ था वही समाज वही लोग शराब की दुकानें खुलते ही अपने असली रंग अपने असली चरित्र में आ गया |
मैं ये सोच रहा हूँ की विधाता आखिर अब इस संसार को बचाए ही क्यूँ ? टिक टॉक के वीडियोज बनाने के लिए या फिर पूरे संसार को शराब के महासमुद्र में तैर कर वैतरणी पार करने के लिए |
आज ये संसार अपनी नियति खुद तय कर रहा है और हमेशा की तरह इसमें वो भी शामिल होंगे जो इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से भागीदार और जिम्मेदार नहीं हैं | हमें इससे और बहुत ज्यादा से भी बहुत अधिक बुरे और भयानक के लिए तैयार हो जाना चाहिए |
सच पूछो तो किसको दोश दोगे इसके लिए ख़ुद इंसानों के अलावा ... इतने बिखरे हुये हैं हम ... कोई सोच नहीं ... दुकान खुली तो ऐसे टूटे जैसे बस यही ज़िंदगी है ...
जवाब देंहटाएंसच तो यही है , सिर्फ यही
हटाएंसच कहा। लगभग डेढ़ महीने की ट्रेनिंग के बाद भी संयम न सीख पाये।
हटाएंसब सीखे सिखाएं हुए हैं भाई साहब
हटाएंइस बारे में दूसरे पक्ष से भी विचार किया जाना चाहिए। शराब की स्थिति और शराबियों की दशा के सापेक्ष इसे देखा जाना चाहिए। शराब तो बिक ही रही थी जो लती हैं वे पी ही रहे थे। कल को अवैध न मिल पाने की स्थिति में नकली से होने वाली मौतों की आशंका भी थी।
जवाब देंहटाएंचलिए मान भी लें कि सरकार ने महज राजस्व के लिए ऐसा किया किन्तु इस सत्य के साथ सत्य यह भी है कि सरकार न किसी से अपील नहीं की खरीदने की। सरकार ने चिपक कर खड़े होने की भी अपील नहीं की किन्तु भीड़ टूटी।
इसके उलट घर में ही रहने की अपील प्रधानमन्त्री तक ने की पर कितने लोगों ने इसे गम्भीरता से लिया।
जो शराब की दुकानों पर उमड़े उनको भी भली-भाँति ज्ञात है कि असावधानी करी तो क्या होना।
हमारा कहना तो ये है कि यह स्थिति जब भी पूरी तरह खुलेगा तब भी होती पर कोरोना का संक्रमण तब भी न होगा, ये कोई न कह सकता।
लाॅकडाउन असल में टीचिंग मैथड़ है, कोरोना संक्रमण से बचने का, जो सरकार ने पढ़ा-सिखा दिया। अब जब भी लाॅकडाउन खुलेगा या ऐसी कोई छूट मिलेगी तो वह नागरिकों की परीक्षा होगी। कौन पास होगा, कौन फेल ये नागरिकों पर निर्भर करेगा।
हां इस पूरे घटनाक्रम को किस नजरिए से भी देखा जा सकता है राजा साहब आपने ठीक कहा कि अब यह लड़ाई बहुत ज्यादा लंबी चलने वाली है ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण हमारा अपना आत्म संयम व आत्मबल है
हटाएंइन लाइनों में लगें लोगों में एक बात सामान्य है, इन्हें ना तो अपने परिवार की फिक्र है और ना ही समाज और देश की। ये खुद तो डूबेंगे ही साथ सबको ले डूबेंगे।
जवाब देंहटाएंशराबियों को इस दुनिया मे शराब के अतिरिक्त इस दुनिया में और कुछ नहीं दिखता ।
हटाएंदुर्भाग्यपूर्ण है । तभी तो ये सवाल खड़े होते हैं कि खाने के लिए पैसे नहीं पर मदिरा के लिए हैं ।
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