रविवार, 2 अक्तूबर 2016

मुद्दा ये नहीं कि , सलमान ने क्या कहा ....






अब इस देश में सबसे  ज्यादा  बड़ी  और  सबसे ज्यादा दिखने और बिकने वाली बात या खबर , सिर्फ ये हो गई है कि अमुक व्यक्ति ने ये कहा , या ये कहना चाहिए कि मीडिया ने मुंह में माईक घुसेड घुसेड के जबरन कुछ न कुछ कहलवाया , और उससे भी अधिक , जो कहा गया या , न भी कहा गया  , उसे पूरी तरह मसालेदार बना कर , काट छांट कर , या अर्थ का अनर्थ करके आम जनता के पास इस तरह से पेश किया जाए कि आम जनमानस किसी नतीजे या निष्कर्ष पर पहुँचने के बजाय , इतने ज्यादा आशंकाओं और अनुमानों में उलझ कर रह जाए कि मुद्दा क्या था यही पार्श्व में चला जाता है |

 सबसे बड़ी विडंबना यही है कि , ये सारा खेल मीडिया हमारे सामने , कभी सबसे ज्यादा सच तो कभी सबसे ज्यादा तेज़ के नाम पर दिन रात परोसता रहता है | किन्तु यहाँ बात मीडिया नहीं बल्कि नेताओं और अभिनातेओं के सार्वजनिक बयानों , उनके मायने और उनके प्रभाव पर बात कर रहे हैं हम |




सलमान खान ने किसी और विषय पर आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार के किसी सवाल (ज्ञात हो कि , कोइ भी समाचार चैनल ये बातें नहीं दिखा बता रहा है ) के उत्तर में बोलते हुए कहा कि , आतंकवादी और कलाकार दोनों भिन्न लोग होते हैं , और कलाकार यहाँ वर्क परमिट , वीजा आदि के प्रावधानों के अनुरूप आते हैं जो खुद उन्हें सरकार मुहैया कराती है , इसलिए उनका विरोध नहीं किया जाना चाहिए | 


इस पोस्ट के लिखने तक इस मामले में आगे और वृद्धि ये हुई है कि पाकिस्तान सरकार ने न सिर्फ भारतीय चैनलों के प्रसारण पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने की घोषणा कर दी बल्कि अपने तमाम सिनेमाघरों से भारतीय पिक्चरों के पोस्टरों तक को उतार फेंका गया गया  | कहने की जरूरत नहीं कि पूर्व में भी ऐसे तमाम समय पर , जो संवेदनशीलता , जो भावुकता , जो स्नेह भारतीय कलाकार उदार होकर व्यक्त करते हैं वो सिर्फ एक तरफ़ा है | इसका ताजातरीन उदाहरण है अभी हाल ही में बहुत सी भारतीय पिक्चरों में अभिनय करके खासा धन अर्जित कर अभी अभी पाक्सितान लौटे अभिनेता फवाद खान का जिन्होंने वापस जाते ही भारतीयों को छोटे दिल वाला करार दे दिया |



इस परिप्रेक्ष्य में दो बातें मुझे याद आ रही हैं जिनका उल्लेख करना यहाँ ठीक होगा , पहली ये कि , इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर एक कथ्य बहुत तेज़ी से पढ़ा देखा जा रहा है |

क्रिकेट को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए और खेलों को इन दो देशीय रिश्तों के तनावों से दूर रखना चाहिए |
फिल्म और कलाकारों को भी ................

साहित्य व् साहित्यकारों को भी  ................



और इसमें और भी जो जो ,जिनका जिनका ध्यान आता हो आपको आप जोड लें ..

.तो फिर भाई लोगों सारी दुश्मनी का ठेका क्या हमारी फ़ौज और हमारी पुलिस ने ही लिया हुआ है या उनका दिमाग खराब है कि वे खामख्वा  में गोलियां बम का शिकार होकर अपनी जान गँवा रहे हैं , वो भी उन्हीं के हाथों जिनसे इन उपरोक्त वर्ग की गहरी सहानुभूति दिखाई देती है | 

और दूसरी  ये  कि , इसी बात पर एक मित्र ने बहुत सटीक टिपण्णी करते हुए कहा था कि , जब हम पाकिस्तान तो अलग थलग करने की बात करते हैं तो फिर वो अलगाव सिर्फ राजनीतिक या सामाजिक और भौगोलिक भर नहीं रह जाना चाहिए बल्कि , साहित्यिक ,सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी ऐसे देशों का पूर्ण बहिष्कार करना चाहिए |


यहाँ गौर करने लायक बात यह भी है कि ,कुछ पाकिस्तानी कलाकार भारत में काम करने के कारण वहां भी निशाने पर लिए जाते रहने के बावजूद भी कभी भारत पर होने वाले आतंकी हमलों में मरने वाले निर्दोष लोगों या पीड़ितों के प्रति सहानुभूति तो नहीं ही जताते हैं , मगर जो एक काम वे कर सकते हैं और उन्हें कभी न कभी करने के लिए बाध्य होना ही पडेगा , वो भी या अपनी खुद की जान के डर या ऐसी ही किन्ही वजहों के कारण नहीं कर पाते हैं , खुल कर इस बात की मुखालफत ....

पाकिस्तानी कलाकारों को खुद भी ये समझना होगा और अपनी सरकार सियासत को भी ये समझाना होगा कि जिस भारत के टुकड़े टुकड़े करने के मंसूबे वे पाल रहे हैं , वर्षों से आतंक और हिंसा के सहारे उसे अंजाम तक पंहुचाने में लगे हैं उस देश (भारत ) का विकास उस देश की शान्ति , कहीं न कहीं, देर सवेर एक पड़ोसी होने के नाते खुद उन्हें और पाकिस्तान को भी इसका लाभ ही पहुंचाता  , खैर जैसा कि पाकिस्तान के मशहूर लेखक तारिक फ़तेह ने कहा कि ..........अफ़सोस ..अफ़सोस ..पड़ोसी अब  गटर बन चुका है |



2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस बात से मै सहमत हूँ- "सारी दुश्मनी का ठेका क्या हमारी फ़ौज और हमारी पुलिस ने ही लिया हुआ है ?"इस झगङे का खामियाजा सबसे ज्यादा उन्हें हीं झेलना पङता है ।

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    उत्तर
    1. आपका बहुत बहुत आभार और शुक्रिया रेखा जी , पढने और प्रतिक्रिया देने के लिए | ये किन्ही मित्र ने अपनी फेसबुक वाल पर साझा किया था , मुझे प्रासंगिक लगा , सो उल्लेख किया , स्नेह बनाए रखियेगा |

      हटाएं

मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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