अब यही मकसद है यही मुकाम है और यही है सबसे बडा मुद्दा भी |
पिछ्ले पांच दिनों में जो कुछ देश की सरकार ने देखा, देश के समाज ने देखा , और पूरे देश ने देखा , या यूं कहें कि अवाम ने जो कुछ दिखाया उसने बहुत सी बातों से को स्पष्ट कर दिया । एक वृद्ध जो न तो कोई राजनेता था न ही धर्मगुरू न तो उसके पास अथाह संपत्ति थी न ही शायद बहुत बडी शारीरिक ताकत के मालिक भी नहीं । अगर उनके पिछले इतिहास को देखा जाए तो ये स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें इस बात की भी चाह नहीं कि उन्हें मसीहा या रोल मॉडल की तरह माना समझा जाए । जिस इंसान ने अपनी लडाई अपने छोटे से गाव से शुरू करके आज पूरे देश को अपने साथ जोड लिया तो जरूर ही ये उसका उद्देश्य ही है जिन्हे वो पहले तय करते हैं फ़िर उसे पाने के लिए शांति अहिंसा और अनशन का वो रास्ता अख्तियार करते हैं कि जो पूरे अवाम को इतना आंदोलित कर देता है कि जो आम लोग बिना किसी खास वजह के पडोस तक में झांकने की जहमत नहीं उठाते वे इनके साथ आ जुडते हैं । जो देश शीला और मुन्नी के गानों पर ठुमके लगाने में व्यस्त होता है उसे वे अपने एक नारे से इस स्थिति में ला देते हैं कि वो देश भक्ति के गानों पर बिना कडी धूप की परवाह किए हुए झूमता है गाता है । इस बार जिस उद्देश्य को लेकर ये लडाई शुरू की गई थी उसने फ़िलहाल तो सरकार को इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि इतिहास में पहली बार सीधे तौर पर किसी कानून को बनाने से पहले न सिर्फ़ जनता की सारी भावनाओं को स्थान दिया जाएगा बल्कि उस कानून को बनाने में जनता की भागीदारी भी होगी । आज चारों तरफ़ जीत का जश्न मनाया जा रहा है लेकिन अन्ना हज़ारे ने बता दिया है कि अभी इस लडाई को अंत की तरह नहीं एक शुरूआत की तरह लेना है । आम लोग बहुत से प्रश्न उठा रहे हैं , बहुत सी आशंकाएं जता रहे हैं , बहस और विमर्श चल रहा है तर्क वितर्क हो रहा है । कोई घोर आशावादी है तो कोई इसे क्षणिक आवेश मान समझ रहा है । कल क्या होगा कोई नहीं जानता लेकिन दो बातें लोगों को जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि जो स्थिति बासठ वर्षों में बनी है देश की उसे रातों रात ठीक नहीं किया जा सकता और अगर आज आपने ये लडाई शुरू नहीं की तो कल को जब आपकी संतानें किसी ऐसे ही मोड पर खडी होकर इस लडाई को शुरू करेंगीं तो निंसंदेह उनके मन के कोने में कहीं ये बात जरूर उठेगी कि अब से पहले देश की जनता क्यों और कहा सोई रही । अन्ना हज़ारे , किरन बेदी , अरविंद केजरीवाल जैसे कर्मवीर लगातार अपना काम कर रहे हैं बिना इस बात की परवाह किए कि कौन कौन उनके साथ है कौन नहीं है । बिना इस बात की चिंता किए कि किस लडाई में वे जीतेंगे किसमें नहीं । अब बहुत से लोगों को लग रहा है कि अब जनलोकपाल विधेयक पर तो सरकार मान ही गई अब कौन से मुद्दे बचे हैं ...लेकिन लडाई तो अभी बांकी है मेरे दोस्तों ..मुद्दे तो यहां कतारबद्ध होकर खडे हैं । देखिए कौन से :-
सूचना के अधिकार की लडाई :- यूं कहने को तो इस अधिकार को पाए हुए अब काफ़ी समय बीत चुका है और आम लोगों ने इसका इस्तेमाल करके उन तमाम अधिकारियों , कर्मचारियों , की रातों की नींद हराम करने के लिए कमर भी कस ली है । सूचना के अधिकार को अपनी लडाई का आधार बना और मान कर बहुत से लोगों ने मंत्रियों और सरकार के हलक में हाथ डालकर उनके कारनामों घोटालों को सामने ला रही है और ये काम बदस्तूर जारी है । हालांकि अभी भी इस सूचना के अधिकार का उपयोग उस स्तर पर नहीं किया जा रहा है जितना कि अपेक्षित है लेकिन इसके बावजूद भी सरकार को इससे इतनी परेशानी हो रही है कि अब तक कुल तीन बार प्रधानमंत्री तक के स्तर पर ये कोशिश की गई है कि इस अधिकार के पर कतरे जाएं तो इससे पहले कि सरकार कोई जुगत भिडाए इस सूचना के अधिकार को भी एक आंदोलन बना देना होगा । जो भी जहां भी जो सूचना चाहते हैं , पारदर्शिता के लिए संस्थाओं को मजबूर करना चाहते हैं उन्हें इसे एक मुहिम बना देना चाहिए ताकि सरकार बौखला कर इसके पर कतरने को मजबूर हो और फ़िर जनता उसे आडे हाथों ले सके ।
प्रतिनिधि वापस बुलाओ विधेयक :- एक बार की गलती और फ़िर अगले पांच वर्षों तक की बेबसी , वोट देकर चुना किसी को वो बन गया किसी और का नुमाईंदा , सारे वादे , सारी योजनाएं भुला कर दिल्ली में बैठ कर वातानुकूलित गाडियों और बंगलों दफ़्तरों में बैठ कर आम जनत का दर्द महसूस करने वालों को एक ही झटके से उसी प्रकिया से दोबारा वापस खींच लाने की मुहिम । हालांकि ये कई राज्यों में लागू किया गया है शायद और इसका उपयोग भी किया जा चुका है आम जनता द्वारा लेकिन इसे भी राष्ट्रव्यापी बनाए जाने की जरूरत है । एक बार अगर इन राजनेताओं के मन में ये डर घर कर गया कि वे एक अस्थाई सेवक हैं न कि उनके बाप दादा की गद्दी है कि जिसे वे कब्जाए बैठे हुए हैं तो उसी दिन से सुधार आने लगेगा । इस अधिकारो को पाने और उसके उपयोग के लिए आम लोगों को खुद को तैयार करना होगा ।
जजेस जवाबदेही बिल :- एक समय हुआ करता था जब भारतीय न्यायपालिका पर लोगों का अटूट विश्वास था और लोग समझ रहे थे कि कम से कम एक दरवाज़ा तो ऐसा है कि जहां तक पहुंचने के बाद न्याय मिलना लगभग तय है और अभी भी स्थिति बहुत ज्यादा खराब नहीं हुई है । लेकिन न्यायपालिका जैसी संस्थाओं में किसी भी गडबडी की गुंजाईश को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और पिछले दिनों जिस तरह से एक के बाद एक बडी छोटी घटनाओं में न्यायाधीशों की लिप्तता की जानकारी आम आदमी को मिली है वो न सिर्फ़ चिंताजनक है बल्कि बहुत ही आत्मघाती भी है । भारतीय न्यायपालिका की सफ़ाई के लिए ये बहुत जरूरी है कि न्यायाधीशों की जवाबदेही तय करने के लिए और दोषी पाए जाने पर उन्हें सीधे सजा देने के लिए ये विशेष कानून लाया जाए । इसके लिए देश के तमाम अधिवक्ताओं को कमर कस के आगे आना चाहिए
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा :- न्यायपालिका में मौजूद भ्रष्टाचार का एक बडा कारण बताया जाता है और है भी वो है भाई भतीजावाद की स्थापित हुई परंपरा । सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सिर्फ़ एक जानकारी ने जो खुलासा किया था और उससे जो बवेला उठ खड हुआ था वो इस बात को प्रमाणित करता है कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ गडबड तो है ही । इसलिए बहुत जरूरी है कि संघ लोक सेवा आयोग की तरह अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन किया जाए और न्यायाधीशों की नियुक्ति स्थानांतरण में पूर्ण पारदर्शिता लाई जाए । हाल ही में ये खबर सामने आई है कि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्तियों की नियुक्ति तक में वरिष्ठता के स्थापित मानदंडों की अनदेखी तक की गई है । इसके गठन से बहुत सी साफ़ सफ़ाई अपने आप हो जाएगी ।
विदेशी बैंक खाता विधेयक :- पिछले दिनों एक मुहिम ने जोर पकडा है कि अब जबकि ये साफ़ और स्पष्ट हो चुका है कि , भारतीयों ने अपना बहुत सा काला धन ( इतना कि भारत की आर्थिक स्थिति बिल्कुल ही उलट जाएगी इससे ) विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है । स्विस बैंकों में बंद भारत की आम जनता के खून पसीने की कमाई को वापस अपने हाथों में लाने के लिए इस कानून का लाया जाना बहुत जरूरी है और इस कानून के तहत सभी विदेशी बैंकों में जमा काले धन को देश की राष्ट्रीय संपदा घोषित किया जाए । बिना ये देखे कि किसका धन है , कहां है , कितना है सीधे उसे भारतीय राजकोष में लाकर विकास कार्यों में लगाया जाए ।
पूर्ण पारदर्शिता विधेयक :- हाल ही में हुए राष्ट्रमंडल खेलों उजागर हुए अंतहीन घोटाले ने , टू जी थ्री जी के नाम पर हुए घोटाले ने , इससे पहले आईपीएल जैसे खेलों के आयोजन में चल रहे पैसे के खेल , जैसे तमाम भ्रष्टाचार के अड्डों को पूरी तरह नग्न करने के लिए पूर्ण पारदर्शिता कानून को लाया जाना चाहिए । किस आयोजन के लिए , किस योजना के लिए कहां से कितना पैसा लिया गया , कितना खर्च हुआ कितना बचा और कितना किस मद में गया । सब कुछ , एक एक पैसे का हिसाब , पूरे राजकोष की एक एक पाई का हिसाब सब कुछ जनता के देखने के लिए उसके सामने होना चाहिए । उसे जहां गडबड लगे वो अपने पूरे हक से सरकार और व्यवस्था से इस बाबत सवाल कर सकती है । नेताओं की , सरकारी अधिकारियों की कर्मचारियों का वेतन भत्ता , कार्य दिवस , अवकाश के दिन सब कुछ जनता ही तय करे इसके लिए भी लडाई लडनी होगी ।
ये तो बस चंद वो मुद्दे हैं जो सामने हैं जिसके लिए आम जनता को किसी भी अनशन , किसी जनांदोलन और किसी जंतर मंतर की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है । इन मुद्दों पर लगातार काम होना चाहिए और हर स्तर पर होना चाहिए । अब आप खुद तय करिए कि आप इसमें से किसके साथ कैसे कब कहां जुड रहे हैं ...क्योंकि ये तो तय है कि आज अगर आप नहीं जुडे तो मजबूर होकर कल आपकी संतानों को इससे जुडना होगा ....मुझे और पूरे देश को प्रतीक्षा है आपके फ़ैसले की ...आप करेंगे न फ़ैसला ....अपना ..देश के भविष्य का ??
हम तो अपने स्तर पर इन मुद्दों से लड़ते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही जुड़ना होगा...बिना एकजुट हुए कोई हल नहीं निकलेगा.
जवाब देंहटाएंयकीनन, बस पहल की जरूरत है. फिर पहल हमसे क्यों नहीं.
जवाब देंहटाएंइस देश में असली प्रजातन्त्रीकरण की और अंग्रेजों के दलाली तंत्र के बर्बादी की शुरुआत हो चुकी है...
जवाब देंहटाएंहम तो आप के साथ हैं।
जवाब देंहटाएंअजय जी, यह पथ-प्रदर्शक सूची बड़े काम की चीज है। क्रान्ति का बीज है!
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा चर्चित पाँचों मुद्दे आज के सबसे ज्वलंत मुद्दे होने वाले हैं... इस को बहुत आसानी से लोग आने देंगे ऐसा भ्रम न पाला जाए... लड़ाई को एक दिशा मिली है लेकिन सफर और संघर्ष बहुत है... आशा की किरण ज़रूर दिखी है
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट .
जवाब देंहटाएंरामदेव जी की TRP कम जो हो गई है , मुददा ही ले उड़े हजारे ।
अन्ना आंदोलन से किसी को कुछ मिला या नहीं परंतु मीडिया को एक बड़ा इवेंट और पत्रकारों को भागदौड़ की एक जायज़ वजह जरूर मिल गई और माल तो मिला ही।
ऐसे आंदोलन और ऐसी कवरेज होती रहनी चाहिए समृद्धि की ओर बढ़ने के लिए ।