रविवार, 8 सितंबर 2024

निजता ख़त्म करता मोबाइल और इंटरनेट

 



आज के समय में मोबाइल और इंटरनेट ने मनुष्य के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनसे मोबाइल और इंटरनेट ने हमारे जीवन को प्रभावित किया है: संचार: मोबाइल और इंटरनेट ने संचार को बहुत आसान बना दिया है। अब हम दुनिया के किसी भी कोने में किसी से भी संपर्क में रह सकते हैं।जानकारी: इंटरनेट ने जानकारी को हमारे हाथों में रख दिया है। अब हम किसी भी विषय पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा: मोबाइल और इंटरनेट ने शिक्षा को भी बदल दिया है। अब हम ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले सकते हैं और ऑनलाइन पाठ्यक्रम पूरे कर सकते हैं।व्यवसाय: मोबाइल और इंटरनेट ने व्यवसाय को भी बदल दिया है। अब हम ऑनलाइन व्यवसाय कर सकते हैं और दुनिया भर में अपने उत्पादों को बेच सकते हैं।. मनोरंजन: मोबाइल और इंटरनेट ने मनोरंजन के नए तरीके प्रदान किए हैं। अब हम ऑनलाइन फिल्में देख सकते हैं, गेम खेल सकते हैं और संगीत सुन सकते हैं।. स्वास्थ्य: मोबाइल और इंटरनेट ने स्वास्थ्य सेवाओं को भी बदल दिया है। अब हम ऑनलाइन डॉक्टरों से परामर्श ले सकते हैं और ऑनलाइन दवाएं खरीद सकते हैं।. बैंकिंग: मोबाइल और इंटरनेट ने बैंकिंग को भी बदल दिया है। अब हम ऑनलाइन बैंकिंग कर सकते हैं और ऑनलाइन लेन-देन कर सकते हैं।. यात्रा: मोबाइल और इंटरनेट ने यात्रा को भी बदल दिया है। अब हम ऑनलाइन टिकट बुक कर सकते हैं और ऑनलाइन होटल बुक कर सकते हैं।इन तरीकों से, मोबाइल और इंटरनेट ने हमारे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है और हमारे जीवन को आसान बना दिया है।

लेकिन सिर्फ ऐसा नहीं है कि मोबाइल के उपयोग के सिर्फ लाभ ही लाभ हैं नहीं बल्कि  मोबाइल और इंटरनेट के दखल से निजता का संकट आ गया है, यह बात सच है। मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारी निजता पर कई तरह के खतरे हैं:डेटा चोरी: मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारा व्यक्तिगत डेटा चोरी हो सकता है, जैसे कि हमारा नाम, पता, फोन नंबर, ईमेल पता आदि।सोशल मीडिया पर निगरानी: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हमारी गतिविधियों पर निगरानी रखते हैं और हमारे व्यक्तिगत डेटा का उपयोग विज्ञापन और अन्य उद्देश्यों के लिए करते हैं। हैकिंग: मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारे खातों को हैक किया जा सकता है, जिससे हमारी व्यक्तिगत जानकारी और डेटा चोरी हो सकता है।स्थान ट्रैकिंग: मोबाइल फोन हमारे स्थान को ट्रैक कर सकते हैं, जिससे हमारी गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकती है।  व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग: मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारी व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग किया जा सकता है, जैसे कि हमारी जानकारी का उपयोग विज्ञापन और अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।इन खतरों से बचने के लिए, हमें मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग सावधानी से करना चाहिए और अपनी निजता की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए।

इसके साथ ही आजकल मोबाइल और इंटरनेट के अधिक उपयोग से कई खतरे भी आज हम सबके सामने हैं जैसे निजता की कमी: मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारी निजता पर खतरा हो सकता है, जैसे कि हमारी व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग।साइबर हमले: मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारे खातों को हैक किया जा सकता है, जिससे हमारी व्यक्तिगत जानकारी और डेटा चोरी हो सकता है।3. स्वास्थ्य समस्याएं: मोबाइल और इंटरनेट के अधिक उपयोग से स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि आंखों की समस्याएं, पीठ दर्द, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं।4. सामाजिक अलगाव: मोबाइल और इंटरनेट के अधिक उपयोग से सामाजिक अलगाव हो सकता है, जिससे हमारे सामाजिक संबंधों पर खतरा हो सकता है।5. निर्भरता: मोबाइल और इंटरनेट के अधिक उपयोग से हमारी निर्भरता बढ़ सकती है, जिससे हमारे दैनिक जीवन पर खतरा हो सकता है।6. वित्तीय नुकसान: मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग से हमारे वित्तीय जानकारी का दुरुपयोग किया जा सकता है, जिससे हमारे वित्तीय नुकसान हो सकता है।7. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: मोबाइल और इंटरनेट के अधिक उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि चिंता, डिप्रेशन, और तनाव।इन खतरों से बचने के लिए, हमें मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग सावधानी से करना चाहिए और अपनी निजता और सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए।

मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग कोरोना काल के बाद से बच्चों में और अधिक बढ़ गया है लेकिन बच्चों और युवाओं पर मोबाइल इंटरनेट की बढ़ती लत के बहुत सारे दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं।  मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: मोबाइल इंटरनेट की लत से चिंता, डिप्रेशन, और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं: मोबाइल इंटरनेट की लत से शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि आंखों की समस्याएं, पीठ दर्द, और नींद की समस्याएं हो सकती हैं।सामाजिक अलगाव: मोबाइल इंटरनेट की लत से सामाजिक अलगाव हो सकता है, जिससे बच्चों और युवाओं के सामाजिक संबंधों पर खतरा हो सकता है। शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव: मोबाइल इंटरनेट की लत से बच्चों और युवाओं के शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उनके भविष्य पर खतरा हो सकता है।निर्भरता: मोबाइल इंटरनेट की लत से बच्चों और युवाओं की निर्भरता बढ़ सकती है, जिससे वे अपने दैनिक जीवन में मोबाइल पर निर्भर हो जाते हैं।साइबरबुलिंग और ऑनलाइन खतरे: मोबाइल इंटरनेट की लत से बच्चों और युवाओं को साइबरबुलिंग और ऑनलाइन खतरों का सामना करना पड़ सकता है।परिवारिक संबंधों पर प्रभाव: मोबाइल इंटरनेट की लत से परिवारिक संबंधों पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे परिवार के सदस्यों के बीच दूरियां बढ़ सकती हैं।इन दुष्प्रभावों से बचने के लिए, माता-पिता और अभिभावकों को बच्चों और युवाओं के मोबाइल इंटरनेट के उपयोग पर निगरानी रखनी चाहिए और उन्हें स्वस्थ उपयोग के बारे में शिक्षित करना चाहिए।

मोबाइल।  कंप्यूटर , इंटरनेट और टीवी तक आज हमारी निजता का उल्लंघन कर सीधे हमारे घरों तक पहुँच कर हमारी सारी बातें देख सुन रहे हैं।  मोबाइल, टीवी, और अन्य उपकरणों के माध्यम से उपभोक्ता की बातें सुनकर उसे उसी अनुरूप विज्ञापन दिखाया जाता है। यह प्रक्रिया "वॉइस ट्रैकिंग" या "ऑडियो ट्रैकिंग" कहलाती है, जिसमें उपकरणों में लगे माइक्रोफोन के माध्यम से उपभोक्ता की बातें रिकॉर्ड की जाती हैं और फिर उसे विश्लेषण किया जाता है ताकि उपभोक्ता की रुचियों और पसंदों के अनुसार विज्ञापन दिखाया जा सके।यह प्रक्रिया कई तरीकों से की जाती है, जैसे कि:

वॉइस असिस्टेंट: वॉइस असिस्टेंट जैसे कि गूगल असिस्टेंट, सिरी, और एलेक्सा उपभोक्ता की बातें सुनते हैं और फिर उसे विश्लेषण किया जाता है ताकि उपभोक्ता की रुचियों और पसंदों के अनुसार विज्ञापन दिखाया जा सके।मोबाइल ऐप्स: कई मोबाइल ऐप्स उपभोक्ता की बातें सुनते हैं और फिर उसे विश्लेषण किया जाता है ताकि उपभोक्ता की रुचियों और पसंदों के अनुसार विज्ञापन दिखाया जा सके।स्मार्ट टीवी: स्मार्ट टीवी भी उपभोक्ता की बातें सुनते हैं और फिर उसे विश्लेषण किया जाता है ताकि उपभोक्ता की रुचियों और पसंदों के अनुसार विज्ञापन दिखाया जा सके।यह प्रक्रिया उपभोक्ता की निजता के लिए खतरा हो सकती है, इसलिए उपभोक्ताओं को अपने उपकरणों की सेटिंग्स को सावधानी से चुनना चाहिए और अपनी निजता की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए।

आजकल समाज में बढ़ते अपराध में भी मोबाइल और  इंटरनेट की भूमिका कई तरह से देखने सुनने को मिल रही है , साइबर अपराध: मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से साइबर अपराध जैसे कि हैकिंग, फिशिंग, और ऑनलाइन धोखाधड़ी बढ़ रहे हैं।सोशल मीडिया अपराध: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपराध जैसे कि साइबरबुलिंग, ऑनलाइन उत्पीड़न, और फर्जी खबरें फैलाना बढ़ रहे हैं।चोरी और लूट: मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से चोरी और लूट की घटनाएं बढ़ रही हैं, जैसे कि ऑनलाइन शॉपिंग के माध्यम से चोरी और लूट।नशीली दवाओं का कारोबार: मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से नशीली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है, जो समाज के लिए खतरनाक है।अतिवाद और हिंसा: मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से अतिवाद और हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है, जो समाज के लिए खतरनाक है। जालसाजी और धोखाधड़ी: मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से जालसाजी और धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ रही हैं, जैसे कि ऑनलाइन जालसाजी और धोखाधड़ी।इन अपराधों को रोकने के लिए, हमें मोबाइल इंटरनेट के उपयोग को सावधानी से करना चाहिए और साइबर सुरक्षा के उपायों को अपनाना चाहिए।

सरकार और प्रशासन ने लोगों की निजता की सुरक्षा के लिए कई तरह के नियम क़ानून कायदे भी बनाए हैं जैसे डेटा प्रोटेक्शन एक्ट: सरकार ने डेटा प्रोटेक्शन एक्ट बनाया है, जो व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए नियम और दिशानिर्देश प्रदान करता है।साइबर सुरक्षा नीति: सरकार ने साइबर सुरक्षा नीति बनाई है, जो साइबर अपराधों से निपटने और साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए नियम और दिशानिर्देश प्रदान करती है। डिजिटल सुरक्षा एजेंसी: सरकार ने डिजिटल सुरक्षा एजेंसी स्थापित की है, जो डिजिटल सुरक्षा के मुद्दों पर निगरानी रखती है और साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देती है। निजता संरक्षण आयोग: सरकार ने निजता संरक्षण आयोग स्थापित किया है, जो निजता के मुद्दों पर निगरानी रखता है और निजता की सुरक्षा के लिए नियम और दिशानिर्देश प्रदान करता है।सार्वजनिक शिक्षा अभियान: सरकार ने सार्वजनिक शिक्षा अभियान चलाया है, जो लोगों को निजता की सुरक्षा के बारे में जागरूक करता है और उन्हें साइबर सुरक्षा के उपायों के बारे में शिक्षित करता है।इन उपायों के माध्यम से, सरकार निजता की सुरक्षा को बढ़ावा देने और साइबर अपराधों से निपटने के लिए काम कर रही है।

भविष्य में मोबाइल और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से समाज में कई तरह के खतरे और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है समाज शास्त्रियों के मानें तो वे खतरे हैं निजता की कमी: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से निजता की कमी हो सकती है, जिससे व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग हो सकता है।साइबर अपराधों का बढ़ना: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से साइबर अपराधों का बढ़ना संभव है, जैसे कि हैकिंग, फिशिंग, और ऑनलाइन धोखाधड़ी।मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि चिंता, डिप्रेशन, और तनाव।शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि आंखों की समस्याएं, पीठ दर्द, और नींद की समस्याएं।सामाजिक अलगाव: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से सामाजिक अलगाव हो सकता है, जिससे व्यक्तिगत संबंधों पर खतरा हो सकता है।आर्थिक नुकसान: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से आर्थिक नुकसान हो सकता है, जैसे कि ऑनलाइन धोखाधड़ी और साइबर अपराधों के कारण आर्थिक नुकसान। शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव: इंटरनेट और मोबाइल के बढ़ते उपयोग से शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे छात्रों के शैक्षिक प्रदर्शन पर खतरा हो सकता है।इन कठिनाइयों से निपटने के लिए, हमें इंटरनेट और मोबाइल के उपयोग को सावधानी से करना चाहिए और साइबर सुरक्षा के उपायों को अपनाना चाहिए।

बुधवार, 28 अगस्त 2024

फिल्म उद्योग में महिलाओं का शोषण

 

दक्षिण भारतीय सिनमा जगत का एक बड़ा नाम , मलयालम फिल्म उद्योग इन दिनों अपने उस काले अध्याय का सामना कर रहा है या कह सकते हैं कि उसका काला सच सामने आ गया है।  ऐसा हुआ है जस्टिस हेमा समिति की वो रिपोर्ट को सरकार को पांच वर्ष पहले सौंपी गई थी जिसे 19 अगस्त को सार्वजनिक किया गया।  


जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट में मलयालम सिनेमा में महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न और लैंगिक असमानता के मुद्दों की जांच की गई है। इस समिति का गठन केरल सरकार द्वारा किया गया था, जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस के हेमा ने की थी। रिपोर्ट में मलयालम फिल्म उद्योग में एक शक्तिशाली पुरुष समूह के अस्तित्व का खुलासा हुआ है, जिसमें 15 प्रमुख लोग शामिल हैं, जिनमें निर्देशक, निर्माता और अभिनेता शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यह शक्तिशाली पुरुष समूह यह तय करता है कि कौन उद्योग में रहेगा और किसे फिल्मों में कास्ट किया जाएगा ¹।

मलयालम फिल्म उद्योग में जस्टिस हेमा कमिटी की रिपोर्ट के बाद कई अभिनेताओं पर आरोप लगे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:दिलीप: अभिनेता दिलीप पर भावना मेनन के मामले में साजिश रचने का आरोप है।एम मुकेश: अभिनेता और सीपीआई (एम) विधायक एम मुकेश पर टेस जोसेफ और मीनू मुनीर द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं।जयसूर्या: अभिनेता जयसूर्या पर मीनू मुनीर द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैंमणियानपिल्ला राजू: अभिनेता मणियानपिल्ला राजू पर मीनू मुनीर द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं।इदावेला बाबू: अभिनेता इदावेला बाबू पर मीनू मुनीर द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं ¹।

 मी टू प्रकरण एक वैश्विक आंदोलन है जो यौन उत्पीड़न और यौन दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाता है। यह आंदोलन 2017 में शुरू हुआ था, जब हॉलीवुड की अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने ट्विटर पर #MeToo हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के अनुभव साझा किए थे।इसके बाद, दुनिया भर की कई महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के अनुभव साझा किए, जिनमें कई प्रसिद्ध हस्तियाँ भी शामिल थीं। इस आंदोलन ने यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक मंच प्रदान किया और समाज में इस मुद्दे पर चर्चा शुरू की।


भारत में भी मी टू आंदोलन ने कई लोगों को अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के अनुभव साझा करने के लिए प्रेरित किया, जिनमें कई प्रसिद्ध हस्तियाँ भी शामिल थीं। इस आंदोलन ने भारत में यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

 बॉलीवुड में महिलाओं के शोषण के कई मामले सामने आए हैं, जिनमें यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार और लैंगिक असमानता शामिल हैं। कुछ प्रमुख मामले हैं:तनुश्री दत्ता और नाना पाटेकर का मामला: तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिसने मी टू आंदोलन को भारत में शुरू किया था।विकास बहल और फैंटम फिल्म्स का मामला: विकास बहल पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे, जिसके बाद फैंटम फिल्म्स को बंद कर दिया गया था। अनु मलिक और सोना महापात्रा का मामला: सोना महापात्रा ने अनु मलिक पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, जिसके बाद अनु मलिक को इंडियन आइडल से निकाल दिया गया था।आलोक नाथ और विनता नंदा का मामला: विनता नंदा ने आलोक नाथ पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, जिसके बाद आलोक नाथ को कई परियोजनाओं से निकाल दिया गया था।इन मामलों ने बॉलीवुड में महिलाओं के शोषण के मुद्दे को उजागर किया और इस मुद्दे पर चर्चा शुरू की 

 समाज शास्त्रियों की माने तो सिनेमा जगत में महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:जैसे शिकायत निवारण तंत्र: सिनेमा जगत में एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना चाहिए जो महिलाओं को अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए सुरक्षित और समर्थन प्रदान करे। लैंगिक समानता प्रशिक्षण: सिनेमा जगत में काम करने वाले सभी लोगों को लैंगिक समानता और यौन उत्पीड़न के बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। महिला सुरक्षा अधिकारी: सिनेमा जगत में महिला सुरक्षा अधिकारी नियुक्त किए जाने चाहिए जो महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण के लिए जिम्मेदार हों। शोषण विरोधी नीतियां: सिनेमा जगत में शोषण विरोधी नीतियां बनाई जानी चाहिए जो स्पष्ट रूप से यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार को परिभाषित करें और दंडित करें।महिला संगठनों को बढ़ावा: सिनेमा जगत में महिला संगठनों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो महिलाओं के अधिकार के लिए निडर होकर खड़ा हो सके।  


 सिनेमा जगत में महिलाओं के शोषण में फिल्मों की भूमिका जटिल और बहुस्तरीय है। फिल्में हानिकारक स्टीरियोटाइप्स को बढ़ावा दे सकती हैं और महिलाओं को वस्तु बना सकती हैं, जिससे शोषण की संस्कृति बनती है। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनसे फिल्में शोषण में भूमिका निभा सकती हैं:

वस्तुकरण: फिल्में अक्सर महिलाओं को वस्तु बना देती हैं, उन्हें केवल उनके शारीरिक रूप और यौन आकर्षण तक सीमित कर देती हैं।स्टीरियोटाइप्स: फिल्में महिलाओं के बारे में हानिकारक स्टीरियोटाइप्स को बढ़ावा देती हैं, उन्हें कमजोर, आज्ञाकारी और पुरुषों पर निर्भर दिखाती हैं।हिंसा का सामान्यीकरण: फिल्में महिलाओं के प्रति हिंसा को सामान्य बना सकती हैं, इसे स्वीकार्य या यहां तक ​​कि ग्लैमरस बना सकती हैं।पितृसत्तात्मक मूल्यों को मजबूत करना: फिल्में पितृसत्तात्मक मूल्यों और मान्यताओं को मजबूत कर सकती हैं, यह विचार बढ़ावा देती हैं कि पुरुष महिलाओं से श्रेष्ठ हैं।प्रतिनिधित्व की कमी: फिल्में अक्सर महिलाओं के विविध प्रतिनिधित्व की कमी होती है, उन्हें हाशिए पर डाल देती हैं और यह विचार बढ़ावा देती हैं कि वे कथा के केंद्र में नहीं हैं।लिंगवादी संवाद और हास्य: फिल्में अक्सर लिंगवादी संवाद और हास्य का उपयोग करती हैं, जो महिलाओं के प्रति हानिकारक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती हैं। शोषण का ग्लैमराइजेशन: फिल्में शोषण को ग्लैमराइज कर सकती हैं, इसे वांछनीय या स्वीकार्य बना सकती हैं।

हालांकि, फिल्में इन मुद्दों को चुनौती देने और परिवर्तन को बढ़ावा देने में भी भूमिका निभा सकती हैं। मजबूत, जटिल महिला पात्रों को चित्रित करके और शोषण और हिंसा जैसे मुद्दों को संबोधित करके, फिल्में सांस्कृतिक दृष्टिकोण को बदलने और अधिक समान उद्योग को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं।न्यायमूर्ति हेमा समिति ने मलयालम फिल्म उद्योग पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है, जिसमें सभी पेशेवरों के लिए, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, एक सुरक्षित और अधिक सम्मानजनक कार्य वातावरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। यह एक अधिक समावेशी और न्यायसंगत उद्योग बनाने की दिशा में एक कदम है।

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

बांग्लादेशी हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चि हो : भारत

 



भारत का एक और पडोसी देश बांग्लादेश भी अपने पूर्ववर्ती और मूल देश पाकिस्तान की तरह ही अब फिर से वही पुराना पूर्व पकिस्तान बनने की राह पर है किन्तु बांग्लादेश का हाल और हालात आज पाकिस्तान से भी कहीं अधिक बुरे हो चुके हैं।  राजनैतिक अस्थिरता के भंवर में पहले ही फंसे बांग्लादेश में हाल ही में आई प्राकृतिक आपदा बाढ़ की विभीषिका ने  बांग्लादेश की हालत और खराब कर दी है।  

बांग्लादेश की सबसे प्रमुख विपक्षी दल  ने वहा के सबसे बड़े और चरमपंथ के कट्टर हिमायती हिफाजत ए इस्लाम के दबाव और प्रभाव में बांग्लादेश के छात्रों युवाओं को अदालत के एक आदेश की मुखालफत के बहाने लोकतंत्र से सत्ता में आई पार्टी और उसके नेता को दरबदर करके , सत्ता पक्ष और उसके तमाम सहयोगियों ,संस्थानों , सेना पुलिस , न्यायपालिका सबको बेदखल कर दिया और अपने राजनैतिक विरोधियों को ख़त्म भी कर दिया।  

छात्रों की अगुआई वाले इस तख्ता पलट ने कुछ ही समय बाद बांग्लादेश के अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्त्व में एक आतंरिक सरकार का गठन भी कर लिया और सेना , पुलिस सहित सभी स्थानों संस्थाओं पर अपने मन मुताबिक़ नियुक्ति भी कर दी गई।  छात्र नेता खुद भी कई जिम्मेदारियों की कमान संभाल के बैठ गए।  

इस बीच दो राजनैतिक दलों , दोनों ही मुस्लिम बाहुल्य एक तीसरे चरमपंथी कट्टर समूह के प्रभाव में एक दूसरे से सत्ता और शक्ति के लिए लड़ते हैं लेकिन इसकी आड़ में फिर अपने ही देश के अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर , उनके घर ,दफ्तर ,मंदिर , दूकान सब पर हमले करके लूटपाट और उपद्रव करके उन पर भयंकर अत्याचार करते हैं। 

पूरे देश के एक हीसे जहां अल्पसंख्यक आबादी रहती थी वाहन से पुलिस थाना क़ानून सबको बंद करके पूरे देश के कट्टर चरमपंथियों को अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने की खुली छूट दे दी जाती है क्यों ?? क्यूंकि उनका मानना था की सत्ता से बेदखल हुई शेख हसीना और उनकी पार्टी को अल्पसंख्यक हिन्दुओं का भी समर्थन प्राप्त था और इस कुतर्क से उनके अनुसार उन्हें अपने ही देश के नागरिकों को लूटने मारने काटने और खत्म कर देने का अधिकार मिल गया।  एक अमेरिकी अखबार ने भी बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले को बदले में की गई कार्यवाई बताया।  

अब हालत ऐसे है की छात्रों द्वारा बनाए गए देश के मुखिया यूनुस से ही छात्रों का सामंजस्य टूट गया है और बांग्लादेश की राजधानी ढाका समेत पुरे देश में फिर से अराजकता के अगले दौर की और बढ़ गया है।  इन सबके बीच बांगलेश के मजहबी आकाओं ने अवसर पाते है अपने तालिबानी फरमानों और शरिया के पाबंदियों को लागू करने का फरमान और फतवा जारी कर दिया है।  हर उस चीज़ और कार्य के विरुद्ध फतवा जारी कर दिया गया है जो मुस्लिम क़ानून में प्रतिबंधित है।  गैर मुस्लिमों को भी हिजाब पहनने का हुक्म जारी हुआ है।  

बांग्लादेश की सरकारी सेवाओं संस्थानों में दशकों से कार्य कर रहे हिन्दुओं को द्वारा कर मार पीट कर उन्हें जबरन नौकरी घर दूकान छोड़ने पर विवश किया जा रहा है।  सबसे दुखद बात ये है कि ये सब खुलेआम हो रहा है और इसके सारे ऑडियो वीडियो प्रमाण समाचार तंत्र और इंटरनेट पर मौजूद हैं इसके बावजूद भी हिन्दुओं के इस नरसंहार पर पूरी दुनिया की चुप्पी शर्मनाक है।  

बांग्लादेश के अंतरिम प्रमुख मुहम्मद यूनुस का भारतीय प्रधानम्नत्री मोदी को " हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कहने के बावजूद भी स्थति में सुधार नहीं आता देख प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रीपति सहित विश्व के बहुत से देशों से बात कर बांग्लादेश में हिन्दुओं पर होते अत्याचार की पर ध्यान दिलाया।  आने वाले समय में भी  हिन्दुओं और दुसरे अल्पसंख्यकों के लिए बांग्लादेश में हालात चिंताजनक ही बने रहने की संभावना है खासकर जब बांदलादेश अब पूरी तरह से मज़हबी कट्टरता में फंसता और बुरी तरह धँसता राष्ट्र बन चुका है।  

सोमवार, 26 अगस्त 2024

आरक्षण की बैसाखी : न टूटे , न छूटे

 



पूरी दुनिया आज विश्व के सामने आ रही चुनौतियों , समस्याओं के लिए अपने अपने स्तर पर शोध , खोज , विमर्श कर रहे हैं , इससे इतर कुछ मज़हबी कट्टरता से दबे देशों का समहू लगा हुआ है अपने विध्वसंकारी मंसूबों की पूरा करने में।  इन सबसे अलग भारत जो अब विश्व के प्रभावशाली देशों में शामिल है वाहन की राष्ट्रीय राजनीति के बहस ,  मंथन का विषय है -आरक्षण व्यवस्था।  दुखद आश्चर्य है कि देश की स्वतंत्रता के सत्तर वर्ष के पश्चात भी आज भारतीय समाज , राजनीति , सब कुछ जातियों का निर्धारण , पुनर्निधारण , वर्गीकरण और अंततः आरक्षण  व्यवस्था के इर्द गिर्द ही घूम रही है।  

सर्वोच्च प्रशासनिक सेवाओं में योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति का फैसला और फिर उसे आरक्षण व्यवस्था के अनुरूप न पाए जाने को लेकर हाल ही में रद्द की गई लेटरल भर्ती योजना की बात हो या फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में निर्णीत एक वाद के आदेश की मुखालफत का जिसमें माननीय अदालत ने वर्षों से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था के अभी तक के परिणामों प्रभावों का आकलन विश्लेषण करके आइना दिखा दिया था।  और इस आदेश की प्रतिक्रिया का हाल ये रहा कि केंद्र सरकार और स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा ारसखान व्यवस्था को किसी भी प्रकार से कमोज़र न किए जाने की बात कहने के बावजूद भी देश भर में हड़ताल बंद और प्रदर्शन किया गया।  

देश का सबसे पुराना राजनैतिक दल और अब विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सर्वोसर्वा राहुल गांधी अपनी अतार्किक बातों बयानों में जिस तरह से सरकार से एक एक व्यक्ति की जाती पूछने बताने के बालहठ पर अड़े हैं उसकी गंभीरता इसी बात से समझी जा सकती है की वे भारतीय सुंदरियों की विजेताओं की सूची में जाती तलाश रहे थे और  कोई भी आरक्षित जातियों में से क्यों नहीं है , ये सवाल उठा रहे थे।  

कुछ वर्षों पूर्व बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी क्रिकेट तथा अन्य खेलों में आरक्षण व्यवस्था को लागू करने की बात कही थी।  ये बातें , बयान , और सोच बताते हैं कि दलितों , वंचितों शोषितों के सामाजिक उत्थान तथा अवसरों में समानता संतुलन के लिए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने जिस आरक्षण व्यवस्था की कल्पना की थी , ये उससे कहीं दूर और अलग है।  

देश में पचास वर्षों से अधिक सत्ता और शासन में बैठी कांग्रेस  और इसके नेता वर्तमान में सबसे बड़ी वैचारिक दरिदता से गुजर रहे हैं इसलिए लगातार तीन चुनावों में बुरी तरह हारने के बावजूद भी देश को जबरन जातीय जनगणना करके दिखाने का दवा कर रहे हैं।  कांग्रेस की दिक्कत ये भी है की विपक्ष में उसके साथ बैठे अन्य दुसरे दल , इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ उतनी प्रतिबद्धता से नहीं दिखाई दे रहे हैं।  कोई भी कांग्रेस की आरक्षित जातियों की इस स्व घोषित ठेकेदार बनने से खुश नहीं दिख रहे।  

विश्व में भारत , नेपाल , बांग्लादेश जैसे गिनती के दो तीन देशों को छोड़कर आज कोई भी देश समाज सरकार आरक्षण या ऐसी किसी भी व्यवस्था अपने यहाँ अपनाए हुए हैं जिसमें सिर्फ जाती को मेधा और योग्यता के ऊपर वरीयता दी जाती हो।  यहाँ तो जातियों को उपजातियों में बांटने की योजनाएं चल रही हैं।  सबसे बड़ी विडंबना यह है की दशकों से चली आ रही इस विवशता के आकलन विश्लेषण , परिणाम और परिवर्तन को लेकर न्यायपालिका के मंतव्य को समझने के बावजूद आरक्षण व्यवस्था वो घंटी बन गई है जिसे बजाना हर कोई चाहता है , बाँधना कोई नहीं।  

किसी भी देश समाज में सामाजिक समरसता और संतुलन के लिए देश समाज द्वारा प्रयास किया जाना कोई अनुचित प्रयोग नहीं है किन्तु भारतीय समाज को कभी न कभी तो जबरन थामी इस बैसाखी का सहारा छोड़ योग्यता के आधार पर जीना बढ़ना होगा क्यूंकि दुनिया यही कर रही है और यही सबसे उपयुक्त है।  

रविवार, 25 अगस्त 2024

बलात्कार : स्त्री के प्रति एक जघन्य अपराध

 




अब से कुछ वर्षों पहले जब देश की राजधानी दिल्ली में सर्दियों की एक रात में , वहशी दरिंदे अपराधियों ने एक चलती हुई बस में एक बच्ची का सामूहिक बलात्कार करके अमानवीय और नृशंस तरीके से उसकी ह्त्या करके सड़क पर फेंक दिया।  अपराध इतना वीभत्स और भयानक था कि इसने पूरे देश को बेटियों की सुरक्षा के प्रति उद्वेलित किया।  सरकार , समाज की प्रतिक्रया देख कर लगा था कि शायद अब महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार और शोषण की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा।  

आज एक दशक के बाद जब अभी दस दिन पूर्व एक महिला प्रशिक्षु चिकित्सक के साथ वही बर्बबरता , वही शोषण करके क्रूर तरीके से उसकी ह्त्या कर दी गई है और एक बार फिर देश खूबड़ और आक्रोशित है।  सच तो ये है कि दिल्ली के उस और कोलकाता के इन दो अपराधों के बीच बीते समय में भी देश भर में बच्चियों , युवतियोन और महिलाओं पर अत्याचार शोषण की हज़ारों लाखों घटनाएं हर साल , हर महीने , हर दिन घटती रही हैं और ये अब भी बदस्तूर जारी है।  

किसी भी देश या समाज की सभ्यता , संस्कृति और संस्कार इस बात पर निर्भर करते हैं कि वो अमुक समाज , देश अपनी स्त्रियों , बच्चों वृद्धों  और बेजुबान पशु पक्षियों से कैसा व्यवहार करता है , उनके प्रति कितनी आत्मीयता दया भाव रखता है और किस तरह से इनकी सुरक्षा , संरक्षण और सहायता के लिए खुद को प्रतिबद्ध करता है।  किन्तु ये उतनी ही अफ़सोस की बात है कि भारतीय समाज अपने वृद्धों , बच्चों , महिलाओं के प्रति कहीं से भी संवेदनशील और सहृदय नहीं है तो बेजुबानों की तो क्या ही कहा जाए।  


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थति की भयवहता का अनुमान हो जाता है।  दिसंबर 2023 को जारी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार भारत में महिलाओं के प्रति किए जा रहे अपराधों में पिछले वर्ष की तुलना में ये 4 % और अधिक बढ़ गया।  रिपोर्ट में खुलासा किया गया है की वर्ष 2020 में कुल 3 ,  71 ,  503  घटनांए तो वर्ष 2021 में ये बढ़कर4 ,  28 ,  278 हो गेन और वर्ष 2022 में यह संख्या और अधिक बढ़कर 4 , 45, 256 घटनाओं की हो गई और ये सब वो मामले हैं जो दर्ज़ किए जा सके हैं।  रिपोर्ट बताती है कि 31 प्रतिशत मामलों में तो घर वाले ही कहीं कहीं संबधित पाए गए हैं और 20 प्रतिशत मामले में उनका अपहरण और शोषण किया गया।  महिलाओं के प्रति अपराध में उत्तर प्रदेश , राजस्थान , पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की स्थति ज्यादा सोचनीय है।  

ऐसा नहीं है कि सरकार , प्रशासन और विधायिका बलात्कार जैसे घृणित अपराध को रोकने के लिए सोच या कर नहीं रहीं हैं , दिल्ली निर्भया मामले के बाद महिलाओं के प्रति अपराध विषयक कानूनों में और अभी हाल ही में लाए संशोधन में दंड को अधिक कठोर किए जाने के बावजूद कानूनों में परिवर्तन मात्र से या दंड को अधिक कठोर भर कर देने से इस अपराध और अपराधियों के मनोभाव पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा खासकर उन परिस्थितयों में जब अपराधी कई खामियों की वजह से साफ़ बच निकलते हैं या छूट जाते है और सालों साल चलने वाले न्यायिक अभियोग के बाद मिले दंड को भुगतने से बचने के लिए भी कानूनी विकल्पों का का सहारा लेते हैं।  हाल ही में राम रहीम को बार बार मिल रहे फर्लो का उदाहरण देख सकते हैं।  

इस घृणित अपराध के अपराधियों में कानून व्यवस्था या अपने अपराध के लिए भुगते जाने वाले दंड का रत्ती भर भी भय नहीं होने की सबसे बड़ी वजह है न्याय मिलने में समयातीत देरी।  विडम्बना या त्रासदी इससे बड़ी और क्या हो सकती है कि संयोगवश अभी हाल ही में , अजमेर में 32 वर्ष पूर्व 100 कालेज जाने वाली बच्चियों का शोषण किया गया , आधे दर्जन पीड़िताओं ने आत्महत्या तक कर ली थी और पूरे 32 वर्ष के बाद सत्र न्यायालय द्वारा दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है।  गौरतलब है की अभी उच्च न्यायालय और सर्वोच्चय न्यायालय में अपील दलील का विकल्प उपलब्ध है।  

महिलाओं युवतियों यहाँ तक कि बच्चियों पर भी हुए अत्याचारों , अपराधों , को लेकर भी देश की पुलिस अफसोसजनक रूप से बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार रवैया दिखाती है।  हाल ही में महाराष्ट्र के बदलापुर में मात्र चार वर्ष की अबोध बच्चियों के साथ शोषण की शिकायत ,पुलिस अधिकारी तीन दिनों तक अनसुनी करती रही जबकि जांच अधिकारी एक महिला पुलिसकर्मी थीं।  शोषण , छेड़छाड़ आदि के अपराध में पीड़ितों की यही शिकायत रहती है की समय रहते ही पुलिस नहीं सुनती , कार्यवाही नहीं करती और वारदात के बाद भी लीपापोती करती है।  

अपनी है आधी आबादी , अपनी ही माँ , बेटी , बहन की सुरक्षा , मान , मर्यादा सुनिश्चित नहीं कर पाने वाला समाज ,देश खुद को विश्व में कितना ही शक्तिशाली और प्रभावशाली बना ले , घोषित कर ले किन्तु ये शक्ति ये प्रभाव किसी भी परिस्थति में आधा ही रहेगा।  सबसे बड़ी बात ये है कि जिस तरह से असम में और इससे पहले बंगलौर में भी ऐसे अपराधों को अगले २४ घंटे में मौत की नींद सुला देने वाले तमाम कारण फिर आम जनमानस को इतनी बड़ी और भारी भरकम न्याय व्यवस्था से कहीं अधिक जरूरी और सही लगने लगे तो ये और भी सचेत हो जाने वाली बात है।  समय रहते ही सब कुछ ठीक करने की दिशा में यदि सच में ही कुछ किया नहीं गया तो समाज के लिए विषम परिस्थितियाँ बनेंगी और समाज से कोई भी अछूता नहीं बचता कोई भी नहीं।   



मंगलवार, 6 अगस्त 2024

दुर्घटनाओं के लिए क्यों नहीं तय हो पाती किसी की जिम्मेदारी ??

 





दुर्घटनाओं के लिए क्यों नहीं तय हो पाती किसी की जिम्मेदारी ??


इस देश में कुछ बातें असाधारण और बेहद चिंताजनक होते हुए भी , इतनी बार दोहराई जा चुकी हैं कि वो अब साधारण बातें और रोज़ाना की दिनचर्या में से एक जैसी ही बन गई हैं या शायद बना दी गई हैं।  हमारे आसपास लापरवाही के कारण होने वाली  सैकड़ों दुर्घटनाएं , फिर चाहे वो कोई रेल दुर्घटना हो , किसी समारोह आयोजन में अचानक मची भगदड़ हो या फिर हाल ही में दिल्ली जैसे महानगर के बीचोंबीच बारिश के पानी में डूब कर तीन युवा बच्चों की मौत , या दिल्ली में ही  खुले नाले में गिर कर एक महिला और उसकी बच्ची की मौत ।  ये तमाम घटनाएं , दुर्घटनाएं , बार बार घटती हैं , हर साल घटती हैं , बस समय और स्थान बदल जाता है। 

इन दुर्घटनाओं के तुरंत बाद दो काम करके आगे बढ़ जाने का जो चलन चला आ रहा है वो जैसे अब एक नियति ही बन चुका है।  दुर्घटना के पीड़ितों को आर्थिक सहायता के नाम पर कुछ अनुदान राशि देने की घोषणा और उसके साथ ही दुर्घटना की जांच करने के लिए किसी जांच दल , आयोग का गठन करके रिपोर्ट आने पर दोषियों को बख्शे नहीं जाने का दावा।  जबकि असलियत में इन तमाम दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार संस्था , अधिकारी या विभाग तक की पहचान करके उसे क़ानून की चौखट तक ले जाना ही सबसे असंभव कार्य हो जाता है।  

दिल्ली के कोचिंग सेंटर दुर्घटना मामले को देख कर इसे आसानी से समझा जा सकता है , जहां पुलिस ने जांच के नाम पर कोचिंग संस्थान के गेट को उखड़वा कर उसकी मजबूती जांच परख कर रही है वहीँ दोषी के रूप में पकड़ लिया एक वाहन चालाक को ,बकौल पुलिस जिसकी तेज़ रफ़्तार के कारण ही जलभराव का पानी बेसमेंट में भर गया और छात्र डूब कर मर गए।  जांच में कोचिंग संस्थान के मालिक , उस केंद्र के संचालक , मैनेजर , व्यवस्थापक , भवन में अवैध रूप से पुस्तकालय बनाने , इसकी अनुमति देने वाले और ऐसा होते देने रहने वाले तमाम , इन दर्जन भर लोगों को छोड़कर दोषी हुई वो कार जिसके हिचकोले से कोचिंग संस्थान का गेट टूट गया।  अदालत ने भी ये सब देखकर पुलिस और जांच एजेंसियों को कड़ी फटकार लगाई।  

ऐसी ही एक दूसरी दुर्घटना , जिसमें दिल्ली नगर निगम ने एक बड़े नाले की मरम्मत करते हुए उसे खुला छोड़ दिया जहां बारिश के जलभराव में एक महिला और उसकी बच्ची की गिर कर मृत्यु हो गई और अभी तक दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली नगर निगम के बीच एक दुसरे को दोषी ठहराने की कवायद जारी है।  

जिस तरह से भीड़ का अपराध या भीड़ में किसने कौन का अपराध किया ये तय कर पाना हमेशा ही दुरूह कार्य होता है ठीक ऐसा ही होता किसी भी दुर्घटना के लिए जिम्मेदार आरोपियों को और यदि ये सरकारी महकमा हुआ तो ये और भी अधिक कठिन बल्कि बेहद दुष्कर हो जाता है।  एक विभाग का नाम आते ही उसके सहयोगी अन्य किसी न किसी विभाग पर भी ऊँगली उठती है।  जितने विभाग उनके उतने कर्मचारी अधिकारी जो , सभी सम्बंधित हैं या फाइल कागजातों में सबके नाम आ जाते हैं ऐसे में फिर सब एक दूसरे क बचाने में लग जाते हैं।  

नाले में गिर कर मृत्यु वाले  हादसे मामले में मुकदमे की सुनवाई करते हुए आखिरकार न्यायालय को सख्त रुख अपनाना पड़ा है और उसने सीधे सीधे जांच एजेंसी और दोषी संस्थाओं से आरोपियों की पहचान कर उन पर कार्रवाई करने अन्यथा अदालत द्वारा स्वय आदेश देकर ऐसा किए जाने की सख्त चेतावनी दी गई  है।  

जब दुर्घटनाओं के लिए किसी की जिम्मेदारी तय करने में हम उलझे रह जाते हैं तो फिर दुर्घटना के कारणों , और उस दुर्घटना से सीख लेकर भविष्य में ऐसी दुर्घटनए न हों इसके लिए विचार और उपाय आदि पर काम करना तो बहुत दूर की कौड़ी होती है।  असल में हालात तो ये है कि कोई भी दुर्घटना का समाचार और लोगों का उससे सरोकार भी सिर्फ और सिर्फ तभी तक रहता है जब तक कोई और नई दुर्घटना हमारे सामने नहीं आ जाती।  ये देश ऐसे ही चलता है , ऐसे ही चलता रहा है।  


बुधवार, 10 अप्रैल 2024

भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी : केजरीवाल एन्ड पार्टी

 







जी हाँ अब तो लोगबाग भी , कभी लोगों के बीच से ही अचानक किसी सिनेमाई अंदाज़ में सीधे दिल्ली की बागडोर थाम कर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी , को इसी नाम से बुलाने लगे हैं , केजरीवाल एन्ड पार्टी।  और ऐसा इसलिए है क्यूंकि जनलोकपाल लाकर राजनैतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मांग और उद्देश्य से गढ़ी गई पार्टी ,के शुरूआती जुझारू लोग जो समय रहते ही सब कुछ भांप समझ कर अलग हो गए थे उसके बाद बचे तमाम बड़े राजनेता , और किसी आरोप में नहीं बल्कि भ्रषटाचार से अवैध धन कमाने और उसके दुरुपयोग में एक एक करके जेल जा रहे हैं और लाख दलीलों और तर्कों के बावजूद भी अदालत को अपनी बेगुनाही के इरादे से भी संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं।  

आज आम आदमी पार्टी और इसके मुख्य बचे हुए संयोजक , बचे हुए इसलिए क्यूंकि कभी , इसी भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किये गए तथाकथित संघर्ष के प्रणेता अन्ना हज़ारे और सभी बेहतरीन साथी , पूर्व प्रशानिक अधिकारी किरण बेदी , पूर्व न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े , साहित्यकार कवि कुमार विश्वास , सामाजिक आंदोलनकारी योगेंद्र यादव , राजनैतिक साथी कपिल मिश्रा और तमाम वो लोग जिन्हें कहीं न कहीं और कभी न कभी ये एहसास हो गया था कि सब कुछ वैसा नहीं है जैसा लोगों को दिखाया और बताया जा रहा है , वे सब धीरे धीरे अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ते गए और इस जगह को भरने के लिए आए कौन , संजय सिंह और भगवंत मान जैसे राजनेता , इसका दुष्परिणाम सामने ही है।  




अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर पर अपनी गैर जरूरी प्रतिक्रिया देने वाले और बाद में बुरी तरह से फटकार खाने वाले पश्चिमी देशों के साथ साथ देश और दिल्ली को भी ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि एक तरह जो राजनैतिक दल , बाकायदा अपने चेहरे और अपनी बात कहने के लिए लाखों रुपये प्रचार प्रसार पर खर्च कर रहा था और बार बार ये जता और बता रहा था कि , राजधानी दिल्ली की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था में , पार्टी और उसकी नीतियों या परिवर्तनों के कारण क्रांतिकारी बदलाव आए और लाए गए , और फिर रात के अँधेरे में यही अच्छे लोग , अच्छी सोच और नीयत वाले लोग , अचानक से शराब बेच कर और बेच कर नहीं बल्कि शराब बेचने खरीदने और पीने की होड़ लगाकर पैसा जुटाने की जुगत में लग गया।  

फिलहाल जो स्थिति आम आदमी पार्टी के तमाम उन राजनेताओं की , जिनका या जिन जिन का इस शराब बेचने के नियम कायदे को बदल कर पैसा बनाने के शर्मनाक अपराध से थोड़ा सा भी तालमेल निकल सकता है , उन सबको अपने ऊपर कानून की तलवार लटकती दिख रही है और जो इस अपराध को रचने और करने के प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए हैं वे सब निरंतर अपने ऊल जलूल तर्कों और बहुत सी गैर जरूरी याचिकाएँ लगा लगा कर निरंतर इस दलदल में नीचे को ओर धँसते जा रहे हैं।  आश्चर्य इस बात पर भी होता है कि आम आदमी पार्टी के तमाम राजनेताओं की पैरवी कर रहे हैं अधिवक्ता अभिषेक मनु शिंगवी ,जो कांग्रेस के जाने माने नेता हैं , वही कांग्रेस जिसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सिरे से ठिकाने लगाया था , गांधार नरेश शकुनि ने कुरु साम्राज्य से बदला लेने के लिए ही महाभारत करवाया था कहते हैं , बाकी तो सब वही जाने।  


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