दिनांक 10 जुलाई 2025
दैनिक जागरण
खबर ये है कि बिहार की एक मतदाता जो कि महिला हैं उनके मतदाता पहचान पत्र पर मतदाता के रूप में जो तस्वीर है वो इसी प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री की है। है न कितने कमाल की बात और ये भी समझिये कि ये एक बानगी भर है। आइये समझते हैं कि आखिर मतदाता सूची को अद्यतित करके उसमें सुधार किये जाने की इस कवायद का इतना पुरज़ोर विरोध क्यों हो रहा है।
आज बिहार की शायद ही कोई पंचायत ऐसी बची हो जहाँ पर मतदाता सूची में दर्ज , दर्जनों और सैकड़ों नाम के ग्रामीण पांच दस बीस और पच्चीस साल पहले ही अपने पेशे और नौकरी को लेकर पूरे देश भर में पलायन करके वहीँ बस गए हैं , लेकिन लेकिन ,
लेकिन आज भी अभी भी बहुत से ऐसे तमाम लोगों का नाम दोनों स्थानों की मतदाता सूची में शामिल है और कमला की बात ये है कि बहुत सारे मतदाता आज भी भी दोनों राज्यों , एक जहां वे वर्षों से रह रहे हैं और दूसरा वो जिसे छोड़े हुए वर्षों बीत चुके हैं। इसके साथ ही ये बात इतनी सरलता से समझी जा सकती है कि यदि वास्तव में ही घर घर जाकर वास्तविक मतदाताओं की पहचान की जाए तो जैसा की अधिकांशतः दिखता है आज बिहार के लगभग सारे गाँव घर खाली होते जा रहे हैं।
मतदाताओं की सूची में दर्ज़ नाम , और इस के साथ ही राशन कार्ड या सरकार द्वारा जारी पेंशन , कई योजनाओं और सहायता राशियों के लाभार्थियों और वास्तविक प्राप्तकर्ताआं के बीच का ये अंतर इतना अधिक है कि केंद्र से मिला ढेर सारा पैसा लील जाता है। और ये सब बिहार में दशकों से होता चला आए रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..