विश्व साक्षरता दिवस, यानि 8 सितंबर , यदि वास्तव में सोचा जाए तो क्या भारत जैसे देश को सच में ही साक्षरता दिवस मनाने का हक है , आइए कुछ तथ्यों पर नज़र डालते हैं
* भारत आज भी अपने कुल खर्च का मात्र छ : प्रतिशत ही शिक्षा के मद में खर्च करता है ।
* भारत में आज भी लगभग 40 % लोग निरक्षर हैं ।
* भारत में कुल बच्चों में से लगभग 29 % आज भी किसी स्कूल में पढने नहीं जा पाते हैं ।
* भारत ही वो देश है जहां सैकडों बच्चों को मुफ़्त भोजन योजना के कारण अपनी जान तक से हाथ धोना पडा है ।
ये तो हुई ग्रामीण भारत की बात अब ज़रा शहरी क्षेत्र की ओर भी नज़र की जाए ।
* आंकडों के मुताबिक शहरी क्षेत्र में रहने वाले लगभग 34 % अभिभावकों ने माना कि अपने बच्चों की फ़ीस भरने के लिए उन्हें कभी न कभी कर्ज़ या उधार लेने की नौबत आई है ।
* सरकारी नियमों और न्यायिक आदेशों के बावज़ूद भी लगभग 89 % स्कूल अभिभावकों को स्कूल में बनाई गई दुकानों से ही किताबें , पुस्तिकाएं व वर्दी तक खरीदने को बाध्य करते हैं ।
* सरकारी नियमों के और न्यायिक आदेशों के बावजूद भी लगभग 42% स्कूल ,गरीब बच्चों को अपने यहां दाखिला इसलिए नहीं देते क्योंकि वे उन्हें मुफ़्त शिक्षा देना नहीं चाहते ।
*शहरी क्षेत्र के निजि स्कूलों में वातानुकूलित कक्षाएं और सरकारी स्कूलों के पास भवन तक नहीं है ।
ये वो चंद आंकडे भर हैं जो सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या भारत को वाकई साक्षरता दिवस मनाने का हक है ??????
एक और बात ये कि शिक्षाव्यक्तित्व के विकास और परिमार्जन से नितान्त तटस्थ है .
जवाब देंहटाएंहां बिल्कुल सच कहा आपने आज की शिक्षा इस मामले में मौन है
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