बुधवार, 23 नवंबर 2011

सुरक्षा , खानपान और स्वच्छता : भारतीय रेल , तीनों में फ़ेल







अभी कुछ दिनों पहले ही सुना था कि भारतीय रेल ने अपने मुनाफ़े को देखते हुए अपने कर्मचारियों को भारी भरकम बोनस दिया था । वाह ! क्या अच्छी बात है यदि इस महंगाई के दौर में कोई सार्वजनिक उपक्रम अपने मुनाफ़े में से एक बडा हिस्सा अपने कर्मचारियों के बीच में बांटता है ।और लगभग ऐसी ही खबर पिछले कई वर्षों से सुनने पढने को मिल जाती है । कुछ वर्षों पहले तो रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने इतना बडा मुनाफ़ा घोषित कर दिया था भारतीय रेल के नाम कि मानो लगने लगा कि कहीं  भारतीय रेल को रिजर्व बैंक न घोषित करना पड जाए । इतनी बडी बडी उपलब्धियों के बावजूद जब ताज़ातरीन घटना दून एक्सप्रेस अग्निकांड जैसी कोई घटना सामने आती है तो एक बडा सवाल उछल कर सामने आ जाता है कि आखिर क्या कारण है कि साठ वर्षों के बाद भी भारतीय रेल किसी भी परिवहन व्यवस्था के लिए बुनियादी अनिवार्यता होती है - सुरक्षा , खानपान और स्वच्छता ।


जहां तक स्वच्छता और खानपान व्यवस्था की बात है तो उस दिशा में तो फ़िर भी कुछ सोचा और किया गया है । प्रयोग के तौर पर ही निजि कंपनियों को रास्ते में भोजन की व्यवस्था और उत्तर पूर्व रेलवे में सफ़ाई की व्यवस्था भी निजि कंपनियों को देकर उसे दुरूस्त करने का प्रयास किया गया । किंतु यहां भी अधिकारियों व प्रशासन द्वारा इसे गंभीरता से न लेना व संचालक लोगों द्वारा अधिक मुनाफ़े के लालच ने कुल मिला कर ये हाल किया है कि लोग अब अधिकांशत: घर से ही ले जाना पसंद करते हैं । दूर के सफ़र में भी वे विकल्प तलाशने की जुगत में रहते हैं । अगर स्वच्छता की बात करें तो इसमें रेलयात्री खुद भी कम जिम्मेदार नहीं होते । भारत में सफ़र के दौरान भारी भरकम सामान ढोने की परंपरा , बर्थ और सीट पर खाने पीने के दौरान चींज़े बिखेरना , प्रसाधनों का गलत तरीके से इस्तेमाल , सहायता व सहयोग करने की व्यावहारिकता का अभाव आदि कुल मिला कर खुद यात्रियों के लिए नारकीय स्थिति पैदा कर देते हैं । भारत में रोजी रोटी की तलाश में पलायन एक सामाजिक मजबूरी है , फ़िर भारत की त्यौहारीय संस्कृति सफ़र को संभावित बनाती है । शहरों की तनाव भरी जिंदगी से राहत लेने व धार्मिक यात्राओं के उद्देश्य से भी भारतीय अपने जीवन में बहुत सी रेल यात्राएं करते हैं । इसलिए ये बहुत जरूरी हो जाता है कि अब एक ऐसी संस्कृति का निर्माण किया जा सके कि लोगों को सफ़र के दौरान अनुशासित व्यवहार करने में अभ्यस्त किया जाए ।


भारतीय रेल यात्रा के संदर्भ में सबसे जरूरी और उतना ही उपेक्षित बिंदु है यात्रियों की सुरक्षा ।  स्थिति कितनी गंभीर है कि अब तो लगभग रोज़ ही रेल और रेल दुर्घटनाओं के सामने आने से ऐसा लगने लगा है मानो रेल भी सडक मार्ग से ही चल रही हो । बरसों पुरानी पटरियां , पुराने हो चुके उपकरण व बरसों पुरानी तकनीक , व नियम कानूनों खुले आम उल्लंघन ऐसे कुछ अहम कारण हैं जिसके कारण रेल दुर्घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है । आश्चर्य की बात ये है कि प्रति वर्ष हज़रों लोगों की मुत्यु  रेलवे क्रासिंग को पार करने के दौरान रेलों की चपेट में आने के कारण हो जाती है । दो रेलों की आपसी टक्कर , पटरी से उतर जाने के कारण व अन्य ऐसे ही कारणों की वजह से भारतीय रेल ,यातायात साधनों के लिए निर्धारित सुरक्षा मानकों के दृष्टिकोण से बिल्कुल फ़ेल नज़र आता है । शीत ऋतु के आते ही कोहरे और धुंध की समस्या से रेलवे परिचालन का बुरी तरह लडखडा जाना , भारतीय रेल की बरसों पुरानी विवशता है ।


भारतीय रेल में सवारी किरायों की दर में वृद्धि के संकेत दे दिए गए हैं , यात्री पहले की तरह अब भी बढी हुई दरों पर भी रेल यात्रा ज़ारी रखेंगे ये तय है , किंतु क्या अब ये जरूरी नहीं हो गया है कि , मुनाफ़े के बावजूद भी सुरक्षा उपायों पर काम न किए जाने और ऐसे हादसों के लिए किसी कि जिम्मेदारी तय न किए जाने की प्रवृत्ति से निज़ात पाई जाए । यात्रियों को ये बताया जाए कि उससे किराए के रूप में वसूला जा रहा पैसा , किसके लिए कितना देना पड रहा है । एक यात्री के रूप में किसी को सुरक्षित उसके गंतव्य में पहुंचाने की जिम्मेदारी भारतीय रेल को समझनी चाहिए अन्यथा सबसे बडे सार्वजनिक उपक्रम का गर्व होना समीचीन नहीं जान पडता । और इससे अलग एक जरूरी बात ये कि लोगों को भी अब खुद को बदलना होगा , सफ़र के दौरान किया जाने वाला व्यवहार और चौकसी की आदत को विकसित किया जाना चाहिए ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने इस विषय पर लिखने के लिए मैं भी सोच ही रही थी की आज आपने लिख डाला :-)..... लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि हमरारी भारतीय रेल कि ऐसी दुर्दशा के लिए दोनों ही पक्षों में बराबर के जिम्मेदार हैं जहां एक ओर रेल व्यवस्था में सुधार होने चाहिए वहीं दूसरी और नियम इतने कड़े होने चाइए कि यात्रियों को उसका पालन करने के लिए बद्ध होना ही पड़े क्यूंकि जैसा कि आपने खुद ही लिखा है कि अगर स्वच्छता की बात करें तो इसमें रेलयात्री खुद भी कम जिम्मेदार नहीं होते। भारत में सफ़र के दौरान भारी भरकम सामान ढोने की परंपरा,बर्थ और सीट पर खाने पीने के दौरान चींज़े बिखेरना,प्रसाधनों का गलत तरीके से इस्तेमाल,सहायता व सहयोग करने की व्यावहारिकता का अभाव आदि कुल मिला कर खुद यात्रियों के लिए नारकीय स्थिति पैदा कर देते हैं। और मेरा मानना यह कि यदि नियम कड़े हों तो जनता को बदला जा सकता है। भले ही हम भारतीय लोगों के बास हर नियम का तोड़ ही क्यूँ ना हो ;).... सार्थक पोस्ट...समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html

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  2. रेलवे सुविधाओं के मामले में बेशक फेल हो रहा है पर यदि रेलवे में भी घोटालों की जांच कराई जाए तो अव्वल आएगा !!

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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