शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

बेलगाम ,बेशर्म, और बेगैरत होते टीवी शोज़






अभी रिएल्टी शो बिग बॉस की अश्लीलता ,गाली गलौज वाली भाषा की बतकुच्चन , शादी और सुहागरात तक को तमाशे के रूप में प्रस्तुत करके दिखाने सजाने की प्रवृत्ति से भारतीय समाज सुशिक्षित हो ही रहा था कि अचानक एक और खबर ने सबको चौंका दिया । इंसाफ़ की आधुनिक देवी के रूप में टीवी द्वारा स्थापित की जा रही राखी सावंत जी ने कुछ ऐसा इंसाफ़ कर डाला कि इसमें प्रतिभागी के रूप में शामिल हुए लक्ष्मण सिंह ने आत्महत्या कर ली । हालांकि इससे पहले भी कई रिएल्टी और टैलेंट शोज़ में कभी जजों की टिप्पणियों तो कभी किसी और कारण से , इसमें भाग लेने वाले या संबंधित लोग कई तरह की मुसीबतों का सामना कर चुके हैं । किंतु हाल ही में कभी स्वंयवर के नाम पर , तो कभी इमोशनल अत्याचार के नाम पर , कभी इंसाफ़ के नाम पर तो कभी तमाशे के नाम पर भारतीय टेलिविजन पर जो कुछ परोसा जा रहा है वो आज एक आम आदमी को कई बातें सोचने पर मजबूर कर रहा है ।
लक्ष्मण सिंह जिसने इसी एपिसोड के बाद आत्मह्त्या कर ली

इस बहस को उठाते ही इसके विरूद्ध जो एक तर्क अक्सर दिया जाता है वो ये कि , ये जो कुछ भी टीवी में दिखाया जा रहा है , वो सब आज समाज में घट रहा है दूसरा ये कि लोग देख रहे हैं तभी तो दिखाया जा रहा है । फ़िर एक बात ये भी कि आज सिनेमा में भी तो ये सब खूब बढचढ कर दिखाया जा रहा है । ये सारे तर्क , सारी दलीलें सर्वथा खोखली और बकवास लगती हैं । समाज में ये सब हो रहा है ??आखिर किस समाज में ? क्या महानगरीय संस्कृति ही ..सिर्फ़ महानगरीय समाज ही पूरे देश के समाज का प्रतिनिधि समाज है ? तो फ़िर उनका क्या जो आबादी आज भी इन महानगरों से दूर ..कहीं बहुत पीछे छूटी बची हुई है ? और क्या महानगरीय समाज में यही सब कुछ हो रहा है । और क्या ये सब निर्विवाद रूप से स्थापित और मान्य है नगरीय समाज के बीच भी ? अब रही बात कि लोग देखते हैं इसलिए दिखाया जा रहा है । तो फ़िर यदि कल को लोग नग्नता की ओर बढेंगे , उसे देखना चाहेंगे तो क्या वही परोसा जाएगा ? क्या बाजारवाद को इस कदर हावी होने दिया जा सकता है कि उसके आगे सब कुछ गौण हो जाए , सब कुछ बौना साबित हो जाए ?? एक तर्क ये कि सिनेमा में भी तो दिखाया ही जा रहा है । सिनेमा आज भी घर घर में नहीं पहुंचा है ..और जब पहुंचता है तो चाहे अनचाहे उस पर वो कैंची चल ही चुकी होती है जो चल जानी चाहिए ।

सबसे बडा सवाल ये है कि , टीवी शोज़ , धारावाहिक , और चैनलों के लिए निर्धारित मापदंडों को देखने परखने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए गठित बोर्डों , संस्थाओं आदि की भूमिका सिर्फ़ एक तमाशबीन की तरह क्यों बनी हुई है । ज्यादा हुआ तो इन कार्यक्रमों की समाप्ति के बाद उन्हें एक नोटिस थमा देना या फ़िर एक औपचारिक सा नोटिस थमा देना ही इतिश्री हो जाती है । आज बिग बॉस के घर में प्रतिभागियों द्वारा खुले आम अश्लीलता का प्रदर्शन , इमोशनल अत्याचार के वो अतरंग प्रसंग (हालांकि इस कार्यक्रम में तो फ़िर भी कई बार काट छांट कर दी जाती है ) किस समाज के लिए और कौन दिखा रहा है ...?? ये बात तय कर ली जानी चाहिए क्योंकि ये वही चैनल है जो अपने विभिन्न धारावाहिकों में समाज में व्याप्त बुराईयों को सामने लाने का दावा करता है । अभी ही ये समय है कि ये भी तय कर दिया जाए कि क्या इनकी कोई सीमा है .....या आने वाले समय में टीवी पर लोगों को आदि मानव ..अपने नग्न रूप में दिखाई देगा ???



12 टिप्‍पणियां:

  1. अजय भाई, वास्‍तव में टीवी और फिल्‍मों में जो दिखाया जा रहा है और जिसके लिए दलील दी जा रही है कि वो ही दिखाया जा रहा है जो समाज में घट रहा है, असल में ये सबकुछ इन कलाकारों के परिवारों में ही हो रहा है इसलिए उन्‍हें सारी दुनिया ऐसी ही लग रही है। एक-एक की पारिवारिक स्थिति देख लो सभी हमाम में नंगे हैं। हमने तो इन सभी को देखना एकदम से बन्‍द कर रखा है।

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  2. अब ऐसा है तो कोई जज बनने के लिये न्याय का पाठ नहीं पढ़ेगा, रिएलिटी शो में कुदो खुद ब खुद जज बन जाओगे.
    अब तो किसी न्यायाधीश की जरुरत ही नहीं है,
    अरे राखि है ना...........
    सचमुच कितना दुषित वातावरण बना दिया है इन रियालिटी शो वालों ने...........
    खैर इसे प्रमोट भी हम और हमारा समाज ही कर रहा है........
    एक गरिब व्यक्ति को हम २ रुपये देने से भी कतराते हैं और इन रिएलिटी शो वालों को एसएमएस भेजते वक्त कुछ भी नहीं सोचते...
    तालियाँ खुद के लिये और अपने समाज के लिये.......................

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  3. इसी्लिए अब हम ऐसे शो देखते ही नही क्योंकि यहाँ बस तो चलेगा नही और सुनवाई कही है नही तो उसे छोडना ही अच्छा।

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  4. हां शायद ऐसा है अजित गुप्ता जी ..तभी शायद इन्हें आम आदमी की संवेदनाओं उनकी भावनाओं का ज़रा सा भी ख्याल नहीं रहता है आपने सच कहा

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  5. आशीष भाई ,
    हमने तो आजतक ..कौन बनेगा करोडपति के लिए भी टराई नहीं मारा ..तो एसएमएस तो क्या खाक करेंगे । एक व्यंग्य लिखा था बहुत पहले इसी एसएमएस वाले चलन पर जल्दी ही रद्दी की टोकरी पर लगाता हूं ।

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  6. काफी विवादपूर्ण मुद्दा है ,मेरा कोई दृढ मत नहीं बन पाया है इस मुद्दे पर अभी

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  7. सही करते हैं सरजी कि केबीसी में एसएमएस नहीं करते, हम भी नहीं करते
    क्या पता करोड़पती बनने के बजाय ...............................:)

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  8. जिसे जज कि अंग्रेजी या हिंदी भी ना पता हो वो भी जज बन जाता हैं , मन तो करता हैं कि खूब गाली दूँ मगर जज कि महिमा सामने नज़र आ जाती हैं,

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  9. अरे तारकेश्वर भाई ,
    ऐसे जजों को जी भर के गलियाईये क्योंकि इससे किसी की मानहानि का कोई प्रश्न नहीं उठता है , वैसे भी अब तो जनता खुद माननीय न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार पर भी बोल रही है , फ़िर ये तो ..छोडिए

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  10. रद्दी की टोकरी पर आपके व्यंग्य का इंतजार है।

    प्रणाम

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  11. ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पडेगा आपको जल्दी ही पोस्ट करता हूं , शुक्रिया

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  12. टीवी हो या फिल्मे सब के सब एक भेड़ चाल पर चलती है एक कार्यक्रम हिट तो सब ऐसा ही बनाने लगते है | ये कुछ समय के लिए ही होता है एक दौर है जो जल्द ही चला जायेगा किसी और फार्मूले आते ही | और इन शो में जिन लोगों को भी दिखाया जाता है वह सभी सभी आम लोग ना हो कर दाम दे कर बुलाये जाते है और लिखा हुआ बोलते है | हम बस एक काम कर सकते है कि कभी इनको देखे ही नहीं ताकि इन की टी आर पी गिरे और ये बंद हो |

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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