मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

बेहद घटिया है भारत का आपदा प्रबंधन




आज बंगलौर की एक बहुमंजिला इमारत में शार्टसर्किट से आग लगने के बाद जान बचाने के लिए मची अफ़रातफ़री में अब तक की जानकारी के अनुसार लगभग नौ लोगों की मृत्यु हो गई । इस घटना ने कुछ सालों पहले दिल्ली के उपहार सिनेमा अग्निकांड की याद दिला दी । हालांकि इश्वर का शुक्र है कि ये आग उतनी तो भयंकर तो नहीं थी मगर फ़िर भी मासूमों की जान तो लील ही गई । सबसे दुखद बात तो ये है कि अब मरने वाले लोगों में से तीन तो आग से बचने के लिए उस इमारत से कूद कर अपनी जान गंवा बैठे हैं । अब इससे ज्यादा घटिया बात और क्या हो सकती है कि जो देश एक तरफ़ तो भविष्य की महाशक्ति बनने का दावा कर रहा है , चांद पर अपने बूते अपना यान भेजने का दंभ भर रहा है ,और जाने इस तरह के कितने बडे बडे काम अपने नाम कर रहा है । उस देश में आपदा प्रबंधन के नाम पर कुछ भी नहीं है । चाहे वो कुंभ जैसे महाआयोजनों में जुटी भगदड मचने को रोकने और संभालने की बात हो , हर साल बिहार ,बंगाल, उत्तर प्रदेश आने वाली बाढ की विभीषका से निपटने की बात हो , आए दिनों होने वाली सडक दुर्घटनाओं और रेल दुर्घटनाओं के बाद मचने वाली अफ़रातफ़री का नज़ारा हो या फ़िर अब देश की एक नियमित नियति बन चुकी आतंकी घटनाओं के बाद हाथ खडे करने वाली स्वास्थ्य सेवाएं हों , किस किस हादसे ,घटना , दुर्घटना की गिनती करें । एक भी ऐसा हादसा और दुर्घटना नहीं होती जिसमें लगता कि स्थानीय , राजकीय या राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन की स्थिति अच्छी है ।


महानगरों में जिस तरह से बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में तेज़ी आई है आश्चर्यजनक रूप से इन बहुंजिला आवासीय और व्यावसायिक इमारतों में सभी सुरक्षा नियमों की जबरदस्त अनदेखी की जाती है । इतना ही नहीं हद तो ये है कि न सिर्फ़ इन इमारतों में बल्कि स्कूलों , अस्पतालों , सिनेमा हालों , मल्टीप्लेकसों और बडे बडे शौपिंग मौलों में भी बचाव के रास्ते, आगजनी से बचने के उपाय , दुर्घटना के समय पडने वाले साधनों और उपायों की उपस्थिति जैसे कारकों पर तो कभी कुछ करना तो दूर की बात है मगर शायद ही इन पर कभी कुछ सोचा गया हो । हालांकि ऐसी किसी घटना दुर्घटना के बाद हमेशा ही सरकार हर बार नए सिरे से जाने कैसी कैसी घोषणाएं कर डालती है और उन पर कुछ दिनों तक पैसा और श्रम लगाया भी जाता है । मगर समय के बीतते जाने के साथ ही सब कुछ फ़ाईलों और उस योजना की रूपरेखा बनते बनते ही खत्म हो जाती हैं । और फ़िर किसी नई घटना/दुर्घटना होने तक बस सब यूं ही खामोश रहता है ।

ये बडे ही हैरत की बात है कि बात बेबात सरकार और हमारा प्रशासन , पश्चिमी देशों की नकल करता है , जाने कैसी कैसी अजीबोगरीब और कभी कभी तो बिल्कुल ही अप्रायोगिक योजनाएं और विचार अपनाने को उद्धत रहता है । वो इन सुरक्षा उपायों , आपदा प्रबंधन के गुर , और इस दिशा में वहां किए गए कमाल के कार्यों , तकनीकों और साधनों के उपयोग को क्यों नहीं अपना पाता है । ऐसा नहीं है कि भारत में वो क्षमता नहीं है कि आपदा प्रबंधन की दिशा में वो सफ़लता नहीं हासिल कर सकता बल्कि , गहरे नलकूपों में गिरे बच्चों को निकालने में सेना , प्रशासन आदि ने जिस अद्भुत इच्छा शक्ति का प्रदर्शन किया था वो काबिलेतारीफ़ था । मगर देश की अरब जैसी संख्या के लिहाज़ से तो ऐसे प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे जैसा भी नहीं है । अब समय आ गया है कि सरकार और प्रशासन आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दों को अपनी पहली वरीयता में रखे और उन पर गंभीरतापूर्वक काम करे । आम जनता, और मीडिया को भी चाहिए कि वो सरकार पर इसके लिए दबाव बनाए ।वर्ना तो जनता मरती रहेगी और मीडिया उन्हें कवर करती रहेगी ।



3 टिप्‍पणियां:

  1. अभी डिजास्टर मैनेजमेंट में एम.बी.ऐ. की तरह पैसा नहीं है.... जिस दिन हो जायेगा... उस दिन सब ठीक हो जायेगा.....

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  2. आज भी हमारे देश में आपदा प्रबंधन की यह स्थिति यक़ीनन शर्मनाक और विचारणीय है ! ईश्वर दुर्घटना में प्राण गवाने वालो की आत्मा को शांतिप्रदान करे !!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  3. हमारी व्यवस्था घोर असामाजिकता की शिकार है, यह उसी के परिणाम हैं।

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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