बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

आखिर हमेशा विवाद को ही सम्मान क्यों ?(दौपदी .....विवाद के बहाने एक चर्चा )




हाल में साहित्य कला अकादमी द्वारा ,श्री वाई लक्ष्मीप्रसाद की पुस्तक द्रौपदी को पुरस्कृत किया गया । जब इस पुस्तक के विरोध किए जाने की खबरें समाचारों में सुनी तो उत्सुकता बढ गई कि आखिर ऐसा क्या लिखा गया है इस पुस्तक में ,। जानने पर पता चला कि इस पुस्तक में द्रौपदी के चरित्र पर खूब सारा लिखा गया है यहां तक कि द्रौपदी को कृष्ण की एक प्रेमिका के रूप में भी दर्शाया गया है । जबकि हम बचपन से ही पढते सुनते आ रहे थे कि द्रौपदी के चीरहरण के समय जब वो हर तरफ़ से हार गई और पूरी तरह बेबस होने के बाद अपने भ्रात समान कृष्ण को पुकारा जिन्होंने उसकी मदद की । इस बात से जुडी कुछ बातें मस्तिष्क को उद्वेलित कर रही हैं । सबसे पहली बात तो ये कि पिछले कुछ समय से एक परंपरा खूब प्रचलन में आ गई है । यदि कुछ बेचना हो तो उसे जबरन किसी भी कारण से विवादित कर दो । विवाद न सिर्फ़ उसका बाजार और बडा कर देगा बल्कि जिस तरह का प्रचलन इन दिनों बढता जा रहा है उसके अनुसार किसी न किसी पुरस्कार के लिए उसकी दावेदारी भी बढा देगा । और यही प्रचलन अब एक परंपरा बनती जा रही है । दुखद आश्चर्य तो ये है कि साहित्य कला अकादमी जैसी संस्थाओं को पूरे वर्ष की साहित्यिक कृतियों में से आखिर क्यों और कैसे कोई एक ऐसी पुस्तक/ग्रंथ/उपन्यास ऐसा नहीं मिल पाता जो निर्विवादित हो ।

अब इस पुस्तक से जुडे एक अन्य पहलू पर बात करते हैं । हिंदू धर्म के चमत्कारिक और पौराणिक चरित्र हमेशा से ही अन्वेषण और बहस का विषय रहे हैं । ऐतिहासिक साक्ष्यों के अभाव और धर्मग्रंथों मे अतिश्योक्ति की संभावना के कारण इसे विवादित बना कर परोसने वालों के लिए ये एक ऐसे मौके की तरह होता है जो इसका सदुपयोग/दुरूपयोग अपनी बंद पडी साहित्यिक दुकानों को चमकाने के लिए करना चाहते हैं। महज़ अंदाज़ों संभावनाओं के आधार पर न सिर्फ़ इन धर्मग्रंथों /धार्मिक नीतियों/ चरित्रों/मान्यताओं .....आदि सबको ही तोड मरोड कर किसी भी रूप में परोसने के लालच से खुद को नहीं रोक पाते । हालांकि सबसे बडी विडंबना ये है कि इन पुस्तकों के लेखक खुद कभी भी किसी तथ्य ( जो ये अपनी सोच और अंदाज़े पर पाठकों के सामने रखते हैं ) को पूरी तरह तो क्या आंशिक रूप से भी प्रमाणित करने का माद्दा नहीं रखते हैं । शायद उनकी ये कोशिश होती भी नहीं है और न ही मंशा होती है । और जो हित उद्देश्य होते हैं .....उसी का परिणाम होता है ऐसे विवादों की उत्पत्ति से उपजा मुनाफ़ा और ऐसे पुरस्कार भी ।

इससे अलग एक और बात जो इस मुद्दे से जुडी हुई है वो ये कि आखिर क्यों सभी को , चाहे वो मशहूर चित्रकर मकबूल फ़िदा हुसैन हों या कि विदेशी कंपंनियां , चाहे कोई फ़िल्मकार हो या फ़िर ऐसे ही साहित्यकार , आखिर इन सभी को हिंदू धर्म और उससे जुडे तथ्य ,उनके देवी देवता, उनके चरित्र ही क्यों अपने विषय के रूप में मिलते हैं । शायद इसका एक बडा कारण है हिंदू धर्म का सहिष्णु होना । भारत का वो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष वाला चेहरा, वही सेक्यूलर छवि । इस तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि के कारण ही कोई भी कभी भी हिंदू धर्म का और तो और भारत राष्ट्रीयता का भी अपमान करने में नहीं हिचकता । मगर फ़िलहाल तो देखना ये है कि कभी सीता , कभी द्रौपदी, और कभी शकुंतला को कटघरे में खडा करके अपनी दुकान सजाने चमकाने वालों को यूं ही कब तक सम्मानित किया जाता रहेगा ?????


14 टिप्‍पणियां:

  1. सनसनी इस युग का मुख्य तत्व हो गया है। हर कोई उस के जरिए प्रकाश में आने के लिए प्रयत्नशील है।

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  2. खबर में बने रहने का तरीका है..

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  3. अजय भईया, ये तो पुरस्कारों की प्रतिष्ठा वापस अर्जित करने का एक तरीका है.. कहिये कैसे?
    वो अईसे कि जब सब जान जावेंगे कि विवादित लेखनवा पुरस्करवा दिलवाए रहे.. तो सबहि विवादित साहित्य लिख्वे करेंगे.. खुदही बोलिए लिख्वे करेंगे कि नाहीं... आउर जब सभी विवादित लिखवेंगे तो एकाध ठौर जो बिना विवाद के लिख्वे करेगा ऊ का पुरस्कार थमाई देंगे..... तो सब अपने आपही कहेंगे कि कमेटी निर्विवाद साहित्य को पुरस्कार देके सही काम करन लागी.... समझे की नाहीं.. पर ई परकिरिया है थोड़ी लम्बी भाई.. तो सबर तो करवे पड़ेगा.. हैं.. कछू गलत तो नहीं कहे हम्म...
    आप भी... समझते नहीं हैं बात को.... निकल पड़ते हैं रात को.... फिर कहते हैं... अँधेरा है....
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड....

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  4. आज हिंदू अपने ही देश में डरे और सहमे हैं, हिंदुओं का अपमान करना आज फेशन हो गया है । धर्म निरपेक्षता की आड़ में वोटों की राजनीति करने वाले दलों ने हिंदुओं के विरोधियों के मनोबल को सातवें आसमन पहुँचा दिया है वहीं हिंदु अपने ही सम्‍मान की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं । इस स्थिति के लिए हिंदु भी कम जिम्‍मेदार नहीं हैं, अपने छोटे छोटे से फायदे के लिए हिंदु ही हिंदु विरोधी ताकतों को बढ़ावा देते हैं । क्‍या देश में शासन कर रहे धर्म निरपेक्षता का ढोंग कर रहे नेताओं में हिंदुओं की संख्‍या ही ज्‍यादा नहीं है ? क्‍या धर्म निरपेक्षता के ढोंगियों को जिताने में हिंदुओं का ही सबसे बड़ा हाथ नहीं होता ? जब तक प्रत्‍येक हिंदू अपने आत्‍म सम्‍मान के लिए आत्‍मा से जाग्रत नहीं होगा तब तक ये स्थिति बदलेने वाली नहीं ।

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  5. @ amit prajapati ki baaton se 100% sahmat..
    hinduon ka virodh karna vastav mein faishon hai...jo hindu virodhi wahi 'secular' kahlaata hai aur jo hinduon ka pakshdhar wo 'aatankwaadi'
    hindu hamesha hinduon ke hi dushman rahe hain..
    hamlogon mein kabhi ekta nahi rahi hai aur iski ummeed bi nahi hai...
    saare 'SHIKHANDI' hain..

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  6. अब मल्टीनेशनल कम्पनियाँ पुरस्कार बाँ ट रही है तो विज्ञापन इसी तरह से होगा

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  7. बहुत गंभीर और मौजू -मगर सृजन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को होनी चाहिए

    और किसी भी धर्म को उसमें टांग नहीं अडानी चाहिए

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  8. आज के दौर में ........सारी चीजे व्यापार बन कर रह गयी है .

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  9. मूल्य निर्णय न देकर आलोचनात्मक ब्याख्यान अच्छा लगा।

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  10. कुछ भी उटपटांग करो और लाईम लाईट मे बने रहो।

    नमस्कार

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  11. मैने किताब नही पढी है लेकिन देखता हू कही इसका कथानक मिल जाये. पिछले कुछ समय मे ये हुअ है कि विवादित को बिक्री का भी लाभ होता है और सम्मान का भी. पहले ऐसा नही होता था. लेकिन ये तो मनोगे की ये वदलाव एक दिन मे नही आया है. जिस देश मे एक पटवारी को टीचर से ज्यादा सम्मान मिलता है वहा ये तो होना ही था

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  12. aaj joe vivadit hai woe hi mashoor hai, chahe woe raamjanam bhoomi hoe ya koi aur cheez.aaj ka naya faanda hai joe viviadit rahega woe aage jayega.

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  13. interesting blog, i will visit ur blog very often, hope u go for this website to increase visitor.Happy Blogging!!!

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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