tag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post6385124695067131563..comments2023-05-28T02:59:32.011-07:00Comments on आज का मुद्दा...........: मीडिया के दो रूप और दो दिशाएंअजय कुमार झाhttp://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-19156270988065776052010-02-16T10:45:52.060-08:002010-02-16T10:45:52.060-08:00सही कहा है आपने....सही कहा है आपने....परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-80908123535199316972010-02-16T10:26:22.869-08:002010-02-16T10:26:22.869-08:00आदरणीय भारतीय नागरिक जी , आपके विचार बांटने के लिए...<i> <b> आदरणीय भारतीय नागरिक जी , आपके विचार बांटने के लिए शुक्रिया , वैसे मैंने कोई आक्षेप नहीं लगाया है ,मगर मीडिया ट्रायल जैसा शब्द ही तब अस्तित्व में आया जब कुछ मामलों में मीडिया ने बिना ही किसी ठोस आधार के किसी को दोषी ठहरा दिया , और फ़िर बाद में अपने कहे से मुकर गई , जैसे कि आरुषि मर्डर केस में तलवार दंपत्ति को भी और यही कारण है कि न्यायपालिका को भी कई बार इस मामले में प्रेस काउसिंल को हिदायत देनी पडी है । मार्गदर्शन करते रहें ।धन्यवाद </b> </i><br /><a href="http://www.google.com/profiles/ajaykumarjha1973#about" rel="nofollow"> अजय कुमार झा </a>अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-40937137072203760352010-02-16T09:27:45.573-08:002010-02-16T09:27:45.573-08:00पहली बात से सहमत. लेकिन मीडिया ट्रायल वाले आक्षेप ...पहली बात से सहमत. लेकिन मीडिया ट्रायल वाले आक्षेप से नहीं. यदि मीडिया इतना सक्रिय न होता तो राठौर मजे मार रहा होता. इसके बावजूद कुछ मामलों में इलेक्ट्रानिक मीडिया का रवैया दोहरा होता है जिससे दूरी नहीं बनाई गई तो त्याज्य हो जायेगी.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-52014013463751850382010-02-16T05:57:00.636-08:002010-02-16T05:57:00.636-08:00यह सही है कि प्रिंट मीडिया में ग्रमीण और कस्बाई सम...यह सही है कि प्रिंट मीडिया में ग्रमीण और कस्बाई समाज स्थान पाता है। लेकिन मजदूर, किसान और श्रमजीवी तो वहाँ भी गायब है। <br />आप ने मीडिया के द्वैत की तरफ अच्छा इशारा किया है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-24301078664125369172010-02-16T04:38:12.711-08:002010-02-16T04:38:12.711-08:00बिलकुल सही कहा आपने .....इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सि...बिलकुल सही कहा आपने .....इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो सिर्फ बिकने में लगा हुआ .....हैDevhttps://www.blogger.com/profile/05009376638678868909noreply@blogger.com