tag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post2149464576938435881..comments2023-05-28T02:59:32.011-07:00Comments on आज का मुद्दा...........: कटघरे में न्यायपालिकाअजय कुमार झाhttp://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-56999395428018612962010-02-12T07:19:32.225-08:002010-02-12T07:19:32.225-08:00बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा...बहुत अच्छी प्रस्तुति।<br />इसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।<br />http://chitthacharcha.blogspot.com/मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-65815345107213661212010-02-12T06:55:44.672-08:002010-02-12T06:55:44.672-08:00झा जी मेरे देश का हर जर्रा भ्रष्टाचार मे लिप्त हो ...झा जी मेरे देश का हर जर्रा भ्रष्टाचार मे लिप्त हो चुका है किस किस की बात करें? न सरकार है न कानून है कुछ भी नही। बस हम और आप केवल लिख सकते हैं इन पर कोई सुनने वाला नहीं । इन नेताऔ और बडे अफसरों ने देश को निगल लिया है ।धन्यवाद इस मुद्दे को उठाने के लिये।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-23859537181711994782010-02-12T03:12:20.073-08:002010-02-12T03:12:20.073-08:001978 में हम जब वकालत में आए थे। वकालतखाने में पता ...1978 में हम जब वकालत में आए थे। वकालतखाने में पता होता था कि फलाँ जज बेईमान है। आज उन की गिनती कोई नहीं करता। हाँ यह जरूर पता होता है कि उन में कौन ईमानदार है। <br />वास्तव में हमारी न्यायपालिका ने सामाजिक न्याय के आधार पर राज्य के दूसरे अंगों पर नकेल कसने की कोशिश की तो न्यायपालिका को भ्रष्ट बनाने के लिए राजनेताओं और देश के पूंजीपतियों ने अपना काम आरंभ कर दिया। सरकारों ने तो यह किया कि आवश्यकता के अनुरुप न्यायपालिका का विस्तार रोक दिया। अदालतें मुकदमों के बोझे तले दबने लगीं। लोग अपना अपना काम निकालने के लिए पहुंच बनाने लगे। जब सेवाएँ कम हों और सेवार्थी अधिक तो पंक्ति तोड़ने के लिए सब कुछ करने लगे। आरंभ में इस से पंक्ति क्रम तो टूटता था लेकिन न्याय के परिणाम पर असर नहीं आता था। लेकिन धीरे धीरे न्यायपालिका घेरे में आ गई। आज स्थिति यह है कि न्यायपालिका को खुद स्वीकार करना पड़ रहा है कि वहाँ भ्रष्टाचार है। <br />इसे सुधारने के पहला कदम न्यायपालिका को यथोचित आवश्यक विस्तार देना ही हो सकता है। एक बार जब समय पर निर्णय करने की बाध्यता हो जाए तो फिर भ्रष्टाचार को भी न्यायपालिका से अलग किया जा सकता है। <br />आज कोटा में जहाँ कम से कम अस्सी न्यायालय होने चाहिए केवल 33 हैं और उस में भी 9 न्यायालय रिक्त पड़े हैं। 80 प्रतिशत मुकदमों में केवल पेशी होती है 20 प्रतिशत में काम हो पाता है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-58204381979399918242010-02-12T02:55:55.610-08:002010-02-12T02:55:55.610-08:00अजय भैया आज का परिवेश इतना दूषित हो चला है की लोगो...अजय भैया आज का परिवेश इतना दूषित हो चला है की लोगों को सिर्फ़ अपने फ़ायदों के सिवा कुछ और नही दिखता चाहे नगर पालिका हो या न्यायपालिका...निर्मल जी जो की एक न्यायमर्ति है उन पर इस तरह से आरोप अगर सिद्ध होता है तो सोचिए न्याय के वक्त वो कितना सही हो सकते है वहाँ भी तो अपने फ़ायदे के लिए अपनी नीति बदल सकते हैं...यह तो देश का परिवेश है..बढ़िया चर्चा.विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7207842174518478014.post-60337450455904402952010-02-12T02:24:20.400-08:002010-02-12T02:24:20.400-08:00अजय जी अच्छा प्रसंग उठाया ! मेरा तो यहाँ तक मानना ...अजय जी अच्छा प्रसंग उठाया ! मेरा तो यहाँ तक मानना है कि सारी समस्याओ की जड़ ही जुदिसिअरी है ! बस आज तो यह किसी गलत पर सही की मुहर लगाने का भ्रष्ट लोगो के लिए एक साधन मात्र रह गया है ! मुझे कई बार आश्चर्य भी होता है कि जब इस देश में तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो लोग जुदिसिअरी पर खुल कर क्यों नहीं कहते ? मायावती की मूर्तियों पर कोर्ट जिस तरह दुलमुल नीति अपना रहे है और एक तरह का उसको मौन समर्थन दे रहे है, क्या वह इसकी पक्षपातपूर्ण नीति नहीं है ? उप में मोबाईल के टावर जब खड़े किये गए तब ये लोग कहाँ सो रहे थे ? आज सिर्फ उसे कानूनी जामा पहनने के लिए यह सब नाटक रचा जा रहा है ! किती हास्यास्पद बात है कि अपने निर्णय में ये कहते है कि स्कूलों और अस्पतालों में मोबाई टावर नहीं लगने चाहिए , दिल्ली जैसी जगहों पर जहां अधिकतर स्कूल लालोनियों और वस्तियों से सठे है वहा जो लोगो ने घर के ऊपर टावर लगाये है उसका क्या ? उअके लिए क्या रूल है कुछ नहीं जबकि कायदे से टावर की १०० मीटर की परीदी में यह सब नहीं होना चाहिए! सब अपनी अपनी रोटियाँ सके जा रहे है बस !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.com